यूपी पुलिस की लापरवाही से इस शख्स को जेल में गुजारने पड़े 13 साल, मामला जानकर चौंक जायेंगे आप

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कहां तो पुलिस का काम लोगों की सहायता करना और उनके साथ खड़ा होना है। मगर उत्तर प्रदेश के आगरा में पुलिस की करतूत की वजह से एक निर्दोष शख्स को साढ़े 13 साल जेल में रहना पड़ा। मामले का खुलासा तब हुआ जब पीड़ित की अपील पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। अब हाईकोर्ट ने दारोगा और सीओ पर कार्यवाई के आदेश दिए हैं।

दरअसल यह मामला 2006 का है। तब ताजगंज थाना में तैनात रहे दरोगा संजय जायसवाल, आरके मिश्रा और सीओ सदर राजेश कुमार पांडेय की लापरवाही से बसई खुर्द निवासी इंटीरियर डिजाइनर पंकज शर्मा उर्फ बॉबी (40) साढ़े 13 साल जेल में बंद रहा। अब जाकर उन्हें इंसाफ मिला है। मगर इसकी उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

बसपा नेता ध्रुव पाराशर के भाई ललित पाराशर की हत्या मामले में बॉबी सहित 6 लोगों को सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पीड़ितों की अपील पर उच्च न्यायालय में हुई सुनवाई में मामला आत्महत्या का साबित हुआ। न्यायालय ने सभी को बरी कर दिया है।

2006 में हुई थी मौत

ललित पाराशर की मौत 22 मार्च 2006 को हुई थी। ध्रुव ने ताजगंज थाना में हत्या का केस दर्ज कराया। ललित के ससुर जगदीश प्रसाद शर्मा, सास शिवरानी, साले पंकज उर्फ बॉबी, राहुल शर्मा, अमित शर्मा, अनिल शर्मा, अन्य रिश्तेदार मूलचंद, विजय शर्मा को नामजद बनाया गया था।

सभी पर पिस्टल से गोली मारकर हत्या करने का आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया। वहीं बॉबी को छोड़कर अन्य को जमानत मिल गई। छह अक्तूबर 2009 को शिवरानी और मूलचंद को छोड़कर अन्य को सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी। ये लोग अपील में हाईकोर्ट गए।

27 साल की उम्र में गए थे जेल

इनकी पैरवी करने वाले वकील अकलंक जैन, वीपी सिंह धाकरे और जितेंद्र सिसौदिया ने बताया कि उच्च न्यायालय ने सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया। बॉबी साढ़े 13 साल से ही जेल में बंद है। वो जब जेल गया था, तब उसकी उम्र 27 साल थी, अब 40 है। विवेचना दरोगा संजय जायसवाल, आरके मिश्रा ने की। विवेचना का पर्यवेक्षण सीओ राजेश कुमार पांडेय ने किया।

जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता बने रहने को कार्यवाई जरूरी

उच्च न्यायालय ने सीओ राजेश कुमार पांडेय और दरोगा संजय जायसवाल पर कार्रवाई कर चार माह में रिपोर्ट भेजने के आदेश एसएसपी को दिए हैं। आदेश के अनुपालन के लिए जिला जज, डीजीपी, आईजी को भी लिखा है। उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है कि यह कार्रवाई इसलिए जरूरी है ताकि जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता बनी रहे।


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This post was last modified on September 6, 2019 4:30 PM

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