World Music Day 2020: प्रकृति की हर एक चीज में संगीत है। संगीत के बिना प्रकृति की हर एक चीज अधूरी सी है, क्योंकि हमारे जीवन में इसका अपना ही एक अलग महत्व है। संगीत एक ऐसी चीज है, जो हमारी खुशी और गम दोनों में हमारा सबसे अच्छा साथी है। म्यूजिक के इसी महत्व को देखते हुए हर साल की 21 जून को ‘ विश्व संगीत दिवस’ (World Music Day) मनाया जाता है।
वर्ल्ड म्यूजिक डे मनाने की शुरुआत फ्रांस से हुई थी। साल 1982 में पहली बार यह दिन मनाया गया और तब से ही हर साल दुनिया भर के संगीत प्रेमी इसे मनाते हैं। फ्रांस में इस जश्न को ‘Fete de la Musique’ कहा जाता है।
प्राचीन है भारतीय संगीत
भारत में संगीत का बहुत महत्व है। हमारे देश ने दुनिया को कई बेहतरीन संगीतकार और गायक दिए। संगीत हमारी प्राचीनतम धरोहर है और इसकी परम्परा यहां सदियों से चली आ रही है। पुराणों में हमारे जितने भी देवी- देवताओं का जिक्र मिलता है, सभी किसी- न- किसी वाद्य यंत्र से संबद्ध माने गये हैं। माता सरस्वती और महर्षि नारद की वीणा, भगवान विष्णु का शंख, शिव जी का डमरू और श्री कृष्ण की मुरली आज भी उनकी प्रतीक मानी जाती है।
भारतीय संगीत की प्राचीनता के प्रमाण मध्य प्रदेश के खजुराहो और उड़ीसा के कोर्णाक मंदिर की दीवारों पर बनी प्रतिमाओं से मिलते हैं, जो बताती हैं कि हमारा संगीत कितना प्राचीन है। इन प्रतिमाओं के साथ हमारे सभी शास्त्रीय वाद्य यंत्रों को दर्शाया गया है।
संगीत के कई बेहतरीन यंत्र जैसे बीन, मृदंग, ढोल, तबला, शहनाई, सरोद, डमरू, घंटी, ताल, चांड, घंटा, पुंगी, पखावज, संतूर आदि का आविष्कार भारत में ही हुआ। इसके अलावा आदिवासी जातियों के भी अपने कई संगीत यंत्र हैं।
कैसी हुई थी संगीत की उत्पत्ति?
संगीत हमेशा से जीवन का एक अहम हिस्सा रहा है। लोग हमेशा से ही अपने भाव रखने के लिए संगीत का सहारा लेते आये हैं, क्योंकि संगीत इन भावों की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता है। आज भी हम संगीत को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है संगीत की शुरुआत कैसे हुई थी?
पद्म पुराण के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने प्रकृति की रचना की और नदी, पहाड़, झरने, पर्वत श्रृंखलाएं, हरे-भरे वृक्ष, रंग-बिरंगे फल-फूल, तितलियां, पशु-पक्षी, जल एवं जलीय जीव जंतु बनाये। तब उन्हें स्वयं को महसूस हुआ कि अभी भी कुछ अधूरा है। इसके बाद भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि वह अपने कमंडल का जल पृथ्वी पर छिड़कें। ब्रह्मा जी के ऐसा करते ही सरस्वती जी प्रकट हुईं। उनके हाथ में वीणा थी। सरस्वती जी ने जैसे ही वीणा की तार छेड़ी, प्रकृति में सुर लहरा उठे। जल से कलरव की आवाज आने लगी, पक्षी चहचहाने लगे, झरनों से शोर उठने लगा। तब ही प्रकृति को संगीत की संजीवनी मिली।
वेद पुराणों में इस बात का जिक्र है कि संगीत की उत्पत्ति के बाद ही प्रकृति पूरी हुई। ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना के साथ ही सरस्वती का आह्वान किया था।
‘सामवेद’ से मिला दुनिया को संगीत
संगीत ग्रंथ की बात करें तो, भारतीय संगीत का प्रथम ग्रंथ सामवेद है। कहा जाता है कि इसी को आधार बना कर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र की रचना की थी, जिसके बाद संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखे गए। दुनिया भर के संगीत सामवेद ग्रंथ से ही प्रेरित हैं।
भारतीय संगीत ने कैसे बदले सुर?
भारत में संगीत का इतिहास तब बदला जब मुग़ल भारत आये। उन्होंने वैदिक संगीत की परंपरा में अरबी और फारसी का संगम किया, जिसके परिणामस्वरूप संगीत की नयी शैलियों ने जन्म लिया। इनमें गजल, खयाल और सूफी प्रमुख हैं। अंग्रेजों के शासन के दौरान भी भारतीय संगीत में कई बदलाव हुए। इसी दौरान हारमोनियम का ईजाद हुआ।
This post was last modified on June 21, 2020 11:55 AM
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