अपनी भाषा का प्रयोग करें, तो देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं पाएगा : निशंक

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नई दिल्ली, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। क्षेत्रीय और वैचारिक संकीर्णताओं से ऊपर उठकर यदि हम अपनी पहचान, अपनी भाषा का प्रयोग करें और उसे गले लगाएं तो देश को आगे बढ़ने से कोई भी शक्ति रोक नहीं पाएगी। जापान, जर्मनी, फ्रांस, इजराइल जैसे दुनिया के समृद्ध तथा विकसित देश इस बात का उदाहरण है कि कोई भी राष्ट्र बिना अपनी भाषा के आगे नहीं बढ़ सकता है। यह बात सोमवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कही।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए केंद्रीय हिंदी संस्थान के हैदराबाद केंद्र के भवन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने भाषा को लेकर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।


केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना 1960 में एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य विदेशों में एवं अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी का प्रचार एवं प्रसार करना है। संस्थान का मुख्यालय आगरा में स्थित है एवं इसके आठ केंद्र- दिल्ली, हैदराबाद, गुवाहाटी, शिलांग, मैसूर, दीमापुर, भुवनेश्वर तथा अहमदाबाद में हैं।

हैदराबाद केंद्र की स्थापना 1976 में हुई थी और इसे केंद्र द्वारा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, गोवा, महाराष्ट्र, केंद्रशासित प्रदेश-पांडिचेरी एवं अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में सेवारत हिंदी शिक्षकों के लिए लघु अवधीय नवीकरण पाठ्यक्रम, संगोष्ठियां एवं कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं।

केंद्र द्वारा उक्त राज्यों के सेवारत हिंदी अध्यापकों को प्रशिक्षण के दौरान हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण से संबंधित अधुनातन प्रविधियों से अवगत कराया जाता है। अब तक हैदराबाद केंद्र द्वारा लगभग 14,000 प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।


शिक्षा मंत्री ने हिंदी की महत्ता को बताते हुए कहा, “राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि राष्ट्रभाषा हिंदी के बिना राष्ट्र गूंगा है, इसलिए हिंदी न केवल हमारी भाषा है बल्कि यह हमारे देश की आत्मा, हमारे देश का गौरव, स्वाभिमान है, जिसके माध्यम से पूरा देश अपने विचारों को बोलता, समझता एवं प्रकट करता है। ऐसा नहीं है कि केवल हिंदी को ही विशेष दर्जा प्राप्त है, बल्कि देश में बोली और इस्तेमाल की जाने वाली सभी भारतीय भाषाएं हमारे देश की आवाज, हमारे देश का गौरव हैं, लेकिन चूंकि हिंदी सबसे अधिक क्षेत्र तथा संख्या में बोली एवं समझी जाती है, इसलिए यह विशिष्ट है। स्वरों और व्यंजनों के स्पष्ट वर्गीकरण तथा वैज्ञानिक व्याकरण से युक्त हमारी यह राष्ट्रभाषा विज्ञान और तकनीकी की दृष्टि से भी उपयुक्त है।”

इस अवसर पर शिक्षा मंत्री ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पदम्भूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी को याद करते हुए कहा, “डॉ. सत्यनारायण ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाई है। तेलुगू भाषी होने के बावजूद डॉ. सत्यनारायण ने भारतीय भाषाओं के एकीकरण और उनकी समृद्धि में अपना पूरा जीवन लगा दिया। दक्षिण से लेकर उत्तर तक हिंदी के प्रचार-प्रसार, शिक्षण-प्रशिक्षण तथा व्यावहारिक पक्ष को उजागर करने वाले डॉ. सत्यनारायण भारतीय भाषाओं के लिए कभी ना बुझने वाली एक मशाल की तरह हैं।”

इस अवसर पर डॉ. निशंक ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाषाई प्रावधानों का भी उल्लेख किया। उन्होनें कहा, “भाषा संबंधी प्रावधान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का एक सबल पक्ष है। जिस प्रकार से नई शिक्षा नीति में नये सिरे से भाषा के प्रश्नों को संबोधित करती है, उससे काफी उम्मीदें जगती हैं और हम इन उम्मीदों को पूरा करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।”

–आईएएनएस

जीसीबी/एएनएम

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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