बेरोजगारी व अनिश्चितता से पाकिस्तानी युवा मानसिक रोगों के शिकार

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लाहौर, 27 जनवरी (आईएएनएस)| आर्थिक व सामाजिक तनावों से जूझते पाकिस्तान में अनिश्चितता, बेरोजगारी, गरीबी और अवसरों की बहुत कम उपलब्धता ने पाकिस्तानी विद्यार्थियों के एक हिस्से को मानसिक रोगों का शिकार बना दिया है। ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने मनोवैज्ञानिकों व अन्य लोगों से बातचीत और सूत्रों से मिली जानकारियों के आधार पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत पंजाब की राजधानी लाहौर के सरकारी और निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को बेचैनी, अवसाद और अन्य मनोवैज्ञानिक समस्याओं का शिकार पाया गया है।

अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश में विद्यार्थियों की मौत की वजहों में आत्महत्या शीर्ष पर है। एक आंकड़े के मुताबिक, बीते साल जितने विद्यार्थियों ने खुदकुशी की है, उनमें से पंजाब का हिस्सा आधे से अधिक, 52.9 फीसदी का रहा है।


अधिकांश छात्र शिक्षा के बाद अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। यह चिंता खाते-पीते घरों के विद्यार्थियों और गरीब घरों के विद्यार्थियों में समान रूप से पाई जा रही है। लेकिन, गरीब विद्यार्थियों को पारिवारिक दबावों का अलग से सामना करना पड़ रहा है।

अखबार ने बताया कि हॉस्टल में रहने वाले छात्रों से उसने बात की और पाया कि उनमें से अधिकांश बेहद तनाव में हैं। कई विद्यार्थियों ने बताया कि वे अपनी मानसिक उलझनों से निजात हासिल करने के लिए चिकित्सकों से दवाएं लेने लगे हैं। ऐसे विद्यार्थियों की संख्या भी काफी मिली जिन्होंने धूम्रपान शुरू कर दिया है। कुछ ड्रग्स भी लेने लगे हैं।

उमर नाम के एक छात्र ने कहा, “मेरी नींद पूरी नहीं हो पा रही है। मैं सिगरेट पीने लगा हूं। रोजगार की अनिश्चितता का असर अभी की पढ़ाई पर पड़ रहा है।”


लाहौर में न केवल पाकिस्तान, बल्कि विश्व के भी कुछ जाने-माने शिक्षण संस्थान हैं। इसके बावजूद शहर के विद्यार्थियों में बेचैनी और हताशा का यह आलम है। देश में अन्य जगहों की हालत का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है।

पंजाब यूनिवर्सिटी के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की छात्रा निमरा ने कहा, “सरकारी विश्वविद्यालयों के मुकाबले, शीर्ष के निजी विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को नौकरी मिल जाती है। मैंने कई जगहों पर नौकरी के लिए अर्जी दी, लेकिन कहीं से जवाब नहीं आया। मैं गहरे डिप्रेशन का शिकार हो चुकी हूं। अपनी सारी उम्मीदें अब मैं खो चुकी हूं। मैं गांव से यहां पढ़ने के लिए आई थी। सोचा था कि पढ़कर परिवार का सहारा बनूंगी लेकिन अब पढ़ाई पूरी होने ही वाली है लेकिन काम कहीं से नहीं मिला।”

पंजाब यूनिवर्सिटी की मनोविज्ञानी व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रफिया रफीक ने कहा कि करीब साठ फीसदी विद्यार्थी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या से गुजर रहे हैं।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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