बिहार : जापानी बटेर बन रहा किसानों की कमाई का जरिया

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सहरसा, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार के कोसी क्षेत्र में अब लोग अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए जहां जापानी बटेर पालने पर जोर दे रहे हैं, वहीं बढ़ती मांग को देखते हुए कृषि और पशुपालन विभाग भी कोसी क्षेत्र में इस प्रजाति की बटेर का पालन करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहा है।

सहरसा कृषि विभाग के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, “सरकार ग्रामीण बेरोजगार युवक-युवतियों के लिए आसान व्यवसाय उपलब्ध कराने के लिए बटेर पालन के लिए जागरूक कर रही है। इसके लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की भी आवश्यकता नहीं है, बल्कि मामूली जानकारी से ही किसान जापानी बटेर का पालन कर सकते हैं।”


उन्होंने बताया, “जिन्हें मुर्गी पालन का थोड़ा भी अनुभव या जानकारी है, वे आसानी से बटेर पालन कर सकते हैं।”

राज्य वन्य प्राणी परिषद के पूर्व सदस्य और पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा कहते हैं, “इसे वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 से बाहर निकाल दिया गया है, जिसके बाद यह पशुपालकों के लिए लाभप्रद व्यवसाय बन गया है। भारत में नौ प्रजातियों के बटेर पाए जाते हैं, जिसमें कुछ वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत भी आते हैं।”

राज्य कृषि विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि बटेर की उत्पादन क्षमता और बटेर पालन एक लाभप्रद व्यवसाय बन गया है। वह कहते हैं कि बटेर को रखने के लिए काफी कम स्थान की आवश्यकता होती है।


जापानी बटेर से जुड़े एक व्यवसायी का कहना है कि जापानी बटेर का प्रति चूजा का बाजार भाव 14-15 रुपये है, जबकि बाजार में एक बटेर 60 से 70 रुपये में मिलता है। उन्होंने बताया कि बटेर काफी कम स्थान में रह लेते हैं, जिस कारण इनके पालन के लिए बड़े स्थान की आवश्यकता नहीं हेती है।

एक मुर्गी के लिए निर्धारित स्थान में आठ से नौ बटेर रखे जा सकते हैं। शारीरिक वजन की तेजी से बढ़ोतरी के कारण बटेर का मांस पांच सप्ताह में पूरी तरह तैयार हो जाता है।

सहरसा के जिला कृषि पदाधिकारी दिनेश प्रसाद सिंह कहते हैं, “कोसी क्षेत्र में लोगों को जापानी बटेर के प्रति जागरूकता बढ़ी है। कृषि विभाग और पशुपालन विभाग समन्वित प्रयास से जापानी बटेर के पालन को बढ़ावा दे रहा है।”

कोसी क्षेत्र में जापानी बटेर के मांस और अंडे की मांग भी बढ़ी है। हालांकि मिश्रा आशंका जताते हैं कि कहीं ऐसा न हो जाए कि वन्यजीव के तहत आने वाले बटेरों का व्यापार होने लगे। उन्होंने कहा कि इसके लिए भी लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।

जानकार बताते हैं, “बटेर के अंडे, मांस में संतुलित मात्रा में अमीनो अम्ल, विटामिन, वसा होते हैं और खनिज पदाथरे की अच्छी मात्रा होती है। मुर्गी की अपेक्षा इसमें रोग की संभावना काफी कम रहती है।”

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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