बिहार में बापू का चरखा थाम महिलाएं बना रहीं लोकल को वोकल

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मुजफ्फरपुर, 3 जून (आईएएनएस)। बिहार में मुजफ्फरपुर के रामदयालुनगर क्षेत्र की रहने वाली सुनैना देवी कुछ दिनों पहले तक घरों में चौका-बर्तन कर अपने परिवार का भरण-पोषण करती थीं। इनके पति रोजगार की तलाश में दिल्ली चले गए थे। इसके बाद घर में दो बच्चों को पालना और घर की रह जरूरत पूरी करने की जिम्मेदारी इन्हीं पर आ गई थी। यही सुनैना अब प्रतिदिन 250 से 300 रुपये कमा रही हैं।

यह कहानी सिर्फ सुनैना की नहीं है। ऐसी ही कहानी रेखा की भी है। रेखा के पति भी मुंबई में काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन से पहले ही वहां से वापस मुजफ्फरपुर लौट आए। उनके लौट जाने के बाद लॉकडाउन में सबकुछ बंद हो गया और घर में खाने के लाले पड़ गए। मगर रेखा ने हिम्मत नहीं हारीं और प्रशिक्षण लेकर ‘बापू’ का चरखा थाम लिया। आज रेखा भी रोजाना 250 रुपये कमा रही हैं।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संक्रमण काल में आत्मनिर्भरता का जो संदेश दिया तो कई महिलाओं ने भी अब आत्मनिर्भर बनने की ठान ली। मुजफ्फरपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में करीब 3,000 घरेलू कामगाार महिलाएं हैं, जो लॉकडाउन में बेरोजगार हो गईं। कोरोना के भय से लोगों ने इन्हें काम से हटा दिया। इन महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाली संस्था ‘संबल’ इनके लिए संबल बनकर सामने आई और इन्हें चरखे का प्रशिक्षण देना शुरू किया।

ऐसी महिलाओं को संगठित करने वाली और ‘संबल’ की प्रमुख संगीता सुहासिनी ने आईएएनएस को बताया, “एक तरफ इनका काम बंद हो गया और दूसरी तरफ इनके पति दूसरी जगह से बेरोजगार हो लौट रहे हैं। हमने इस संबंध में खादी ग्रामोद्योग संघ से बात की। तब उन्होंने एक चरखा उपलब्ध करवाया और ऐसी महिलाओं को ग्रुप बनाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।”

शहर के अघोरिया बाजार की रहने वाली कौशल्या देवी कहती हैं कि जब काम छूट गया था, तब कुछ नहीं सूझ रहा था, लेकिन अब बापू के चरखे ने उनके लिए आत्मनिर्भर बनने का सपना फिर से जगा दिया है।


खादी ग्राम उद्योग संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार ने बताया कि इन महिलाओं के लिए 35 चरखे मंगवाए गए हैं। इन्हें कच्चा माल भी दिया जाएगा और कुछ ही दिनों में ये महिलाएं भी सूत कातने लगेंगी। तैयार सूत खादी ग्रामोद्योग खरीद करेगा। कुछ ही दिनों में ये महिलाएं रोजाना 150 से 170 रुपये कमाने लगेंगी।

उन्होंने बताया कि फिलहाल खादी ग्रामोद्योग में 482 महिलाएं सूत कातने का काम कर रही हैं। इनमें से अधिकांश महिलाएं 250 से 300 रुपये कमा रही हैं। वह कहते हैं कि ग्रामद्येाग संघ द्वारा भी 25 महिलाओं को अलग से प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

प्रशिक्षण लेने वाली महिलाएं भी मानती हैं कि यह किसी दूसरे के घर में झाड़ू-पोछा करने से ज्यादा अच्छा है।

सिंह कहते हैं, “पहले चरण में इनकी ट्रेनिंग कराई जा रही है। ट्रेनिंग के बाद ग्रुप बनाकर इन्हें महंगा चरखा दिया जाएगा, जिसका पूरा खर्च खादी संघ वहन करेगा। इन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराने से लेकर सूत खरीदने तक की जिम्मेदारी खादी ग्रामोद्योग की है।”

इधर, संबल संस्था भी महिलाओं और खादी ग्रामद्योग के बीच सेतु का काम कर रही है। महिलाएं भी अब खादी के द्वारा लोकल को वोकल बनाने में जुट गई हैं।

–आईएएनएस

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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