बुंदेलखंड पैकेज का मसला नीति आयोग पहुंचा

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भोपाल, 5 अगस्त (आईएएनएस)| बुंदेलखंड की तस्वीर बदलने के लिए एक दशक पहले मंजूर किए गए विशेष पैकेज की राशि का सदुपयोग न होने की वजह से यह इलाका अब भी बदहाली के दौर में है। बुंदेलखंड के मध्य प्रदेश वाले हिस्से पर 2100 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि खर्च हो चुकी है, मगर कोई भी विभाग ब्यौरा देने तैयार नहीं है। यह मामला अब नीति आयोग तक पहुंच गया है और उसने राज्य योजना आयोग से खर्च की गई राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र मांग लिया है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने वर्ष 2008 में उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के छह जिलों के विकास के लिए बुंदेलखंड पैकेज के तहत 7600 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की थी। इन 13 जिलों को मिलाकर ही बुंदेलखंड बनता है। मंजूर की गई राशि में से 3860 करोड़ रुपये मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में विकास कायरें के लिए आए थे। इसमें से वर्ष 2015 तक 2100 करोड़ रुपये मंजूर किए गए और उनसे काम कराया गया।

सामाजिक कार्यकर्ता और कांग्रेस की प्रदेश इकाई के सचिव पवन घुवारा ने बुंदेलखंड पैकेज में हुई गड़बड़ी के मामले को कई बार उठाया और राज्य योजना आयोग से वस्तु स्थिति साफ करने को कहा, मगर नतीजा कुछ नहीं निकला। उसके बाद घुवारा ने इस मामले की शिकायत नीति आयोग से की। घुवारा का आरोप है कि विशेष पैकेज की राशि के बड़े हिस्से को खर्च किया जा चुका है, मगर संबंधित विभाग उपयोगिता प्रमाण पत्र के संदर्भ में जानकारी और कराए गए कामों का ब्यौरा तक देने को तैयार नहीं हैं।


घुवारा ने पांच विभागों द्वारा कराए गए विभिन्न कार्यो का उपयोगिता प्रमाण-पत्र जारी न किए जाने की शिकायत नीति आयोग से की। इस पर नीति आयोग ने एक अगस्त को राज्य योजना आयोग के उप सचिव को निर्देश जारी किया कि निर्माण कार्यो की जानकारी घुवारा को देने के साथ ही आयोग को भी भेजें। राज्य योजना आयोग को संबंधित विभागों के उपयोगिता प्रमाण पत्रों का ब्यौरा नीति आयोग को भेजना होगा।

ज्ञात हो कि केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार के समय राशि मंजूर हुई थी, जिसे उत्तर प्रदेश के सात जिलों और मध्य प्रदेश के छह जिलों पर खर्च किया जाना था। पैकेज की राशि खर्च करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर थी। पैकेज के तहत मध्य प्रदेश के छह जिलों -सागर, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ, पन्ना और दतिया- के लिए 3860 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। इस राशि से जल संसाधन, कृषि, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, उद्यानिकी, वन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, पशुपालन, मत्स्य-पालन, कौशल विकास आदि विभागों के जरिए सरकार को अलग-अलग काम कराने थे।

घुवारा का कहना है, “उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी किए जाने से यह पता चलता है कि संबंधित विभाग ने क्या कार्य कराए हैं। जब उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जाते तो भ्रष्टाचार होने की आशंका बनी रहती है। बुंदेलखंड पैकेज की राशि में भ्रष्टाचार हुआ, यह किसी से छुपा नहीं है। उपयोगिता प्रमाण पत्र के जारी न होने से भ्रष्टाचार का मामला दबा हुआ है। यह उपयेागिता प्रमाण पत्र संबंधित विभाग राज्य योजना आयोग को भेजते हैं, सिर्फ नल जल योजना से जुड़े लगभग 100 करोड़ रुपये के कार्यो का ही उपयोगिता प्रमाण पत्र राज्य योजना आयोग तक पहुंचा है।”


घुवारा के अनुसार, “बुंदेलखंड पैकेज में से खर्च की जा चुकी लगभग 2,100 करोड़ रुपये की राशि में से सिर्फ 100 करोड़ रुपये का ही उपयोगिता प्रमाण पत्र राज्य योजना आयोग तक आया है। इसका अर्थ साफ है कि, 2000 करोड़ रुपये के कार्यो का उपयोगिता प्रमाण पत्र ही विभागों ने नहीं दिया है।”

ज्ञात हो कि हर मामले में पिछड़े बुंदेलखंड के लिए पैकेज मंजूर हुआ था। इस पैकेज के जरिए उन कार्यो को कराया जाना था, जिससे खेतों को सिंचाई के लिए पानी मिले, पेयजल संकट से निपटा जाए, रोजगार के साधन विकसित हों, युवा तकनीकी रूप से प्रशिक्षण पाकर सक्षम बनें। लेकिन इस पैकेज के तहत बनाए गए कई बांध कुछ साल में ही फट गए, नलजल योजना की पाइप लाइनों के बिछाने में गड़बड़ी हुई, बकरी पालन के लिए बीमार बकरियां दी गईं। नहरें उन स्थानों पर बनाई गईं, जिन स्थानों पर पानी ही नहीं होता। इतना ही नहीं नहरें कुछ साल में क्षतिग्रस्त हो गईं। पहाड़ों पर तालाब बना दिए गए।

मामला नीति आयोग तक पहुंचा और उसकी ओर से जारी किए गए निर्देश के बाद अगर उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी किए जाते हैं तो पैकेज की राशि में हुई गफलत का सामने आना तय है।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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