गिद्ध संरक्षणकर्ता भारतीय शख्स को ग्लोबल अवार्ड

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नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (आईएएनएस)। ब्रिटेन की सबसे बड़ी प्रकृति संरक्षण चैरिटी ‘रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ (आरएसपीबी) ने भारत के गिद्धों को विलुप्त होने से बचाने के लिए और प्रकृति संरक्षण में उत्कृष्ट योगदान के लिए राम जकाती को प्रतिष्ठित मेडल से नवाजा है।

1990 के दशक में भारत की गिद्ध आबादी वेटरिनरी ड्रग, मवेशियों को दिए जाने वाले डाइक्लोफेनेक, जो गिद्धों के लिए हानिकारक था और जिसे खाकर ये मर जाते थे, के कारण इस पक्षी की आबादी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी।


दवा का इस्तेमाल इतना व्यापक था कि भारत की गिद्ध आबादी डाइक्लोफेनाक के उपयोग से पहले सिर्फ एक प्रतिशत तक रह गई थी।

कई वर्षों तक हरियाणा में वन विभाग के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन रहे जकाती ने न केवल दवा पर प्रतिबंध लगाने, बल्कि अभयारण्यों, प्रजनन केंद्रों का एक नेटवर्क स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि प्रतिबंध लागू होने से पहले गिद्ध विलुप्त नहीं हो जाए।

गिरावट के कारण की पहचान होने से पहले उनका काम शुरू हुआ और उनके शुरुआती हस्तक्षेप को भारत के गिद्धों की रक्षा का एक बड़ा कारक माना जा सकता है।


बाद में उन्होंने सेव (सेविंग एशियाज वल्चर्स फ्रॉम एक्सटिन्क्शन), एक अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को पाने में मदद की जो आज तक दक्षिण एशिया के गिद्धों के संरक्षण में एक समन्वय भूमिका निभाती है।

एशियाई गिद्ध संरक्षण कार्यक्रम आज, 20 साल बाद, प्रभावी संरक्षण डिलीवरी का विश्वभर में एक बड़ा उदाहरण है।

आरएसपीबी की मुख्य कार्यकारी अधिकारी बेकी स्पाइट ने कहा, “जलवायु और प्रकृति संकट और मानव गतिविधि का प्रभाव कई बार आम प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा रहा है।”

उन्होंने कहा, “लेकिन दुनिया भर में लोग और कुछ सरकारें इससे लड़ रही हैं। इसलिए मुझे खुशी है कि हम डॉ. जकाती के महत्वपूर्ण काम का जश्न मनाने में सक्षम हैं। उनकी ऊर्जा और संकल्प ने भारत में गिद्धों को विलुप्त होने से रोक दिया है।”

वहीं, जकाती ने कहा, “मैं इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को पाकर बहुत खुश हूं। मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हम भारत में गिद्ध संरक्षण में तेजी से प्रगति कर सकते हैं क्योंकि हमारे पास 2000 की शुरुआत में एक उत्कृष्ट टीम थी।”

उन्होंने कहा, “इसलिए, मैं उस वल्चर (गिद्ध) टीम की ओर से इस पुरस्कार को स्वीकार करना चाहूंगा जिसने भारतीय गिद्धों को संभावित विलुप्त होने से बचाने के लिए काम की एक ठोस नींव रखी।”

उन्होंने आगे कहा कि मैं विशेष रूप से बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के विभू प्रकाश और निकिता प्रकाश, आरएसपीबी के डेबी पेन और क्रिस बोडेन, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के रीस ग्रीन और जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन के एंड्रयू कनिंगम और इंटरनेशनल बर्ड ऑॅफ प्रे सेंटर की जेमिमा पैरी जोन्स के नामों का उल्लेख करना चाहूंगा।

–आईएएनएस

वीएवी-एसकेपी

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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