नई दिल्ली, 25 अप्रैल (आईएएनएस)| होटल लीलावेंचर अधिग्रहण की बोली पर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) रोक के साथ कई सवाल पैदा हुए हैं।
संयुक्त रूप से 10 फीसदी से थोड़ा अधिक की हिस्सेदारी वाले दो छोटे निवेशकों-आईटीसी और एलआईसी- द्वारा एनसीएलटी के पास दायर याचिका और सेबी ने इस अधिग्रहण को आगे बढ़ने पर रोक लगा दी है। एनसीएलटी के पास दायर याचिका में कंपनी पर दबाव डालने व कुप्रबंधन का आरोप लगाया गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, मध्य-पूर्व के एक अरबपति ने एक भारतीय आर्म्स डीलर के साथ मिलकर लीलावेंचर के लिए 60 करोड़ डॉलर की बोली लगाई थी जोकि किसी अन्य बोली से अधिक है।
साथ ही, उन्होंने मुंबई स्थित लीला की परिसंपत्ति (जो एएआई के साथ कानूनी विवाद के अधीन है।) समेत कंपनी के पूर्व बकाये कर्ज का एक-एक फीसदी चुकाने की पेशकश की थी।
लीला की कहानी में कई मोड़ हैं और त्रुटिपूर्ण अधिग्रहण अब जांच के घेरे में है।
माना जाता है कि जेएम फाइनेंशियल ने इस बोली को जानबूझकर अलग रखा और उनको जेएमएफ के पास नौ करोड़ डॉलर बयाना राशि के रूप में जमा करने को कहा जबकि उन्होंने ब्रुकफील्ड से एक भी पैसा नहीं मांगा।
मध्यपूर्व के कारोबारी और हथियार सौदागर ने नायर बंधु-विवेक-दिनेश के साथ जनवरी के दूसरे सप्ताह में कई दौड़ की बैठक की, हालांकि जेएमएफ अपने रुख पर कायम रही।
इसके अलावा, थाइलैंड की प्रख्यात होटल चेन माइनर होटल्स ने भी लीला ग्रुप के लिए बोली लगाई थी और उनसे भी बोली की राशि का 15 फीसदी जमा करने को कहा गया क्योंकि जेएमएफ उनको ब्रुकफील्ड के खिलाफ बोली में शामिल होने से रोकना चाहती थी।
दरअसल, ब्रुकफील्ड ने नायर बंधुओं में से प्रत्येक को ब्रांडिंग और बौद्धिक संपदा अधिकार के लिए 150 करोड़ रुपये का भुगतान किया था जोकि इस सौदे का दूसरा पहलू है और इस पर गंभीर सवाल उठ रहा है। सेबी अब जेएम फाइनेंशियल एआरसी के आचरण की जांच कर रही है।