लोकार्पण : एक ‘ब्लैक वारंट’ में तिहाड़ की तमाम तिलिस्मी ‘कहानियां’

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नई दिल्ली, 27 नवंबर (आईएएनएस)| लोकार्पण से पहले ही जमाने भर में चर्चित हो चुकी किताब ‘ब्लैक वारंट’ का मंगलवार को विधिवत नई दिल्ली में ‘लोकार्पण’ हो गया। ब्लैक वारंट दरअसल तिहाड़ के अंदर के तिलिस्म को बाहर लाने वाली पहली किताब कही जा सकती है। ऐसा नहीं है कि, ‘ब्लैक वारंट’ से पहले तिहाड़ जेल से जुड़े तमाम मुद्दों पर किताबें प्रकाशित नहीं हुई हैं।

जेल के अंदर के कहानी-किस्सों पर आधारित तमाम किताबें पहले भी प्रकाशित हुई हैं। ब्लैक-वारंट का ‘करंट’ मगर उसके नाम से ही पाठकों के जेहन में कौंध जाता है। सबसे पहले पाठक इसी सवाल का जबाब पाने की उधेड़बुन में उलझ जाता है कि उसने अब तक जमाने में ‘डैथ-वारंट’ तो सुना था। आखिर इस ‘ब्लैक वारंट’ के भीतर क्या है? मतलब साफ है कि किताब का टाइटिल ‘हिट’ तो समझिये, किताबी दुनिया में सब-कुछ फिट। हाल-फिलहाल एशिया की सबसे बड़ी और सुरक्षित समझी जाने वाली तिहाड़ जेल के पूर्व जेलर की मुंहजुबानी पर आधारित और इस चर्चित किताब ‘ब्लैक वारंट’ के मंगलवार को दिल्ली में आयोजित लोकार्पण समारोह में देश और दुनिया भर के तमाम नामी-गिरामी शख्सियतों ने शिरकत की।


उल्लेखनीय है कि तिहाड़ जेल के सैकड़ों गूढ़ रहस्यों से परदा उठाती ब्लैक-वारंट को किसी मंझे हुए लेखक ने नहीं लिखा है। इसके लेखक हैं 35 साल तिहाड़ जेल की नौकरी करके यहां से सेवानिवृत्त हो चुके पूर्व जेलर (कानूनी सलाहकार) सुनील गुप्ता। जेल की जिंदगी की तमाम रहस्यमय कहानियों पर से बेखौफ परदा उठाती सुनील गुप्ता के साथ ‘ब्लैक-वारंट’ लिखने वाली किताब की सहयोगी लेखिका हैं पत्रकार सुनेत्रा चौधरी।

रोली प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘ब्लैक वारंट’ के दिल्ली के डिफेंस कालोनी में मंगलवार को आयोजित हुए लोकार्पण समारोह में देश की तमाम नामी गिरामी हस्तियां मौजूद रहीं। इस मौके पर देश के कुछ नामी जज, वकील, पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ, तमाम बुद्धिजीवी वरिष्ठ पत्रकार-लेखकों की मौजूदगी भी देखी गई।

208 पेज में ‘ब्लैक वारंट’ को प्रकाशित करने वाली रोली प्रकाशन की सर्वेसर्वा प्रिया कपूर ने आईएएनएस से विशेष बातचीत में कहा, ‘जितनी सनसनीखेज कहानी उतना बड़ा जोखिम। बस चंद शब्दों में तो ब्लैक वारंट का सच यही है। ब्लैक वारंट चूंकि जेल की जिंदगी पर आधारित है। लिहाजा इस विषय पर कोई किताब लाने से पहले, हमें तमाम आइंदा सामने आने वाली संभावित कानूनी अड़चनों पर भी भागीरथ प्रयास करने पड़े। अब जब ब्लैक वारंट पाठक के हाथ में पहुंची और उसकी जो प्रतिक्रयाएं सामने आ रही हैं, उससे लगता है कि ‘ब्लैक-वारंट’ का ‘सफेद-सच’ वाकई बहुत मीठा है।”


ब्लैक वारंट में तिहाड़ जेल के पूर्व जेलर सुनील गुप्ता ने उन आठ सजा-ए-मौत का भी जिक्र किया है, जो उनके सेवाकाल में तिहाड़ जेल में मौजूद फांसी के फंदे पर अमल में लाई गयीं। इनमें रंगा-बिल्ला, इंदिरा गांधी के दोनो कातिलों, कश्मीरी आतंकवादी मकबूल बट्ट का भी जिक्र है। साथ ही निर्भया बलात्कार – हत्याकांड के मुख्य आरोपी राम सिंह की कथित आत्महत्या पर भी किताब में खुलकर चर्चा की गई है। 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद के हालात हों या फिर किरण बेदी द्वारा जेल में किए गए एतिहासिक बदलावों का अंदरुनी सच। जेल में आंखों देखे और कानों से सुने अधिकांश किस्सों को ब्लैक-वारंट के किसी न किसी पन्ने का हिस्सा बनाने की कोशिश की गई है।

ब्लैक-वारंट के लोकार्पण समारोह में वरिष्ठ जज और नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी के सदस्य सचिव आलोक कुमार, निदेशक नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी के निदेशक जज सुनील चौहान, सांसद डेरेक ओ ब्रायन, बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के चेयरमैन के.सी. मित्तल, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव और वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अरोड़ा, हबीब, जावेद हबीब, अमजद हबीब ने भी शिरकत की।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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