मप्र : अफसरों ने मंत्रियों के अनुमोदन बगैर जवाब विधानसभा भेजे, नेता प्रतिपक्ष ने उठाया सवाल

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भोपाल, 1 मार्च (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश विधानसभा में मंत्रियों द्वारा दिए गए जवाब और सदन के बाहर दिए गए बयानों में अंतर का मामला सामने आने के बाद अब अफसरों द्वारा मंत्रियों के अनुमोदन बगैर जवाब सीधे विधानसभा को भेजे जाने की बात सामने आई। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने इसे विशेषाधिकार हनन का मामला बताते हुए विधानसभा अध्यक्ष एन. पी. प्रजापति को पत्र लिखा है। विधानसभाध्यक्ष प्रजापति को गुरुवार को लिखा गया भार्गव का पत्र मीडिया को शुक्रवार को प्राप्त हुआ। पत्र में नेता प्रतिपक्ष ने कहा है, “मुख्यमंत्री सहित कई मंत्रियों के विभागों से संबंधित विधायकों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब सचिव व प्रमुख सचिवों द्वारा मंत्रियों के अनुमोदन बगैर सीधे विधानसभा में भेजे जाने का मामला सामने आया है। विधानसभा की उत्तर पुस्तिका में मंत्रियों के नाम से जवाब का उल्लेख है। यह स्थिति अत्यंत आपत्तिजनक व असंवैधानिक है। यह अधिकारियों और मंत्रियों की कार्यप्रणाली पर और उनकी बौद्घिक व प्रशासनिक क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है।”

पत्र में भार्गव ने आगे लिखा है, “विधायक, जो वैधानिक तौर पर जनप्रतिनिधि हैं, उनके द्वारा पूछे गए सवालों के उत्तर केवल मंत्री द्वारा दिए जाने का प्रावधान है। किंतु संबंधित विभागों के सचिव व प्रमुख सचिव द्वारा सीधे जवाब मंत्री के अनुमोदन के बगैर विधानसभा को भेजे गए। ऐसे अधिकारियों का उत्तरदायित्व निर्धारित कर दंडनीय कार्रवाई की जानी चाहिए।”


संबंधित विभागों के अफसरों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को नेता प्रतिपक्ष ने विशेषाधिकार का हनन करार दिया है। उन्होंने इस मामले को विशेषाधिकार समिति को सौंपे जाने की मांग की है। साथ ही चेतनावनी भरे अंदाज में कहा है, “विधानसभाध्यक्ष ने यदि यह मामला विशेषाधिकार समिति को नहीं सौंपा, तो इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की जाएगी।”

ज्ञात हो कि विधानसभा के 18 से 21 फरवरी के बीच हुए सत्र के दौरान नर्मदा नदी के तट पर पौधरोपण, सिंहस्थ घोटाले और मंदसौर गोली कांड को लेकर मंत्रियों के आए जवाब पर सरकार की खूब किरकिरी हुई थी। तीनों ही मामलों को कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया था, मगर मंत्रियों के जवाब में भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार को क्लीन चिट दे दी गई थी। उसके बाद सामने आया कि मंत्रियों के अनुमोदन के बगैर ही अफसरों ने विधानसभा को सीधे जवाब भेजे हैं।

 


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