चेन्नई, 11 मई (आईएएनएस)| अपने नियमों में ढ़िलाई बरतते हुए अखिल भारतीय शतरंज महासंघ (एआईसीएफ) ने कहा कि दोबारा पंजीकरण कराने वाले खिलाड़ियों कों अब किसी गैर-मान्यता टूर्नामेंट जीती हुई इनामी राशी का 50 प्रतिशत नहीं देना होगा।
एआईसीएफ के अनुसार, 23 मार्च को हुई केंद्रीय परिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि जिन खिलाड़ियों को फिर से पंजीकरण में रुचि है, उन्हें लिखित में माफी मांगनी होगी और एक वचन देना होगा कि अब से वो मौजूदा कानूनों/नियमों का पालन करेंगे।
भारतीय शतरंज संस्था ने हाल ही में कहा था कि उसकी प्राथमिकता दंड देना नहीं बल्कि अनुशासन और प्रतिभा को बढ़ावा देना है।
एआईसीएफ ने अपने नियमों में इस चीज को शामिल नहीं किया है कि खिलाड़ियों को गैर-मान्यता प्राप्त टूर्नामेंट में भाग नहीं लेना चाहिए।
हालांकि, एआईसीएफ द्वारा बैन किए गए एक खिलाड़ी गुरप्रीत पाल सिंह ने आईएएनएस से कहा, “भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने पिछले साल यह घोषणा की थी कि भारतीय शतरंज निकाय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के प्रावधानों के तहत खिलाड़ी उन टूर्नामेंट में भाग नहीं ले सकते जिसे एआईसीएफ की मान्यता प्राप्त नहीं है।”
उनके अनुसार, देश में किसी भी कानून का उल्लंघन करने वाली कोई भी शर्त शुरुआत से मान्य नहीं है। सिंह ने कहा कि पहले एआईसीएफ ने कहा था कि फिर से पंजीकरण कराने वाले खिलाड़ियों को गैर-मान्यता प्राप्त टूर्नामेंट में जीती गई इनामी राशी का 50 प्रतिशत ‘विकलांग शतरंज खिलाड़ी कोष’ में जमा करना हेागा।
उन्होंने कहा कि 2010 में एआईसीएफ ने तीन अन्य खिलाड़ियों समते उन पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि गैर-मान्यता प्राप्त टूर्नामेंट में भाग न लेने वाला नियम 2011 में लागू किया गया था।
सिंह ने कहा, “एआईसीएफ को हमारी वैश्विक शतरंज रेटिंग (ईएलओ रेटिंग) को बहाल करना चाहिए और हमें फिर से पंजीकृत करना चाहिए। मैं माफी पत्र नहीं दे सकता क्योंकि इससे मेरे शतरंज करियर के नुकसान के मुआवजे के लिए एआईसीएफ के खिलाफ मेरा अधिकार खत्म हो जाएगा।”
सीसीआई ने 12 जुलाई 2018 को गैर-मान्यता प्राप्त टूर्नामेंट में खिलाड़ियों के भाग न लेने से जुड़े एआईसीएफ के अंडरटेकिंग को माना था।