शुरुआती चरणों में शहरी, ग्रामीण क्षेत्रों के मतदान की प्रवृत्ति पर एक नजर

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नई दिल्ली, 29 अप्रैल (आईएएनएस)| देश में चल रहे लोकसभा चुनाव के शुरुआती चरणों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान की प्रवृत्ति में 2014 की तुलना में अंतर पाया गया है। यह विश्लेषण चुनाव आयोग के आंकड़ों पर आधारित है।

उदाहरण के तौर पर, दूसरे चरण में 18 अप्रैल को हुए मतदान के आंकड़ों पर गौर करें तो शहरी क्षेत्र बेंगलुरू मध्य में पिछले संसदीय चुनाव के मुकाबले 1.45 फीसदी कम मतदान हुआ है। इस संसदीय क्षेत्र में इस बार 54.29 फीसदी मतदान हुआ, जबकि 2014 में 55.74 फीसदी मतदान हुआ था।


इसी प्रकार, बेंगलुरू दक्षिण में 2014 में जहां 55.67 फीसदी मतदान हुआ था वहां 2019 में 53.47 फीसदी हुआ। इस प्रकार इस बार मतदान में 2.2 फीसदी की कमी आई है।

तमिलनाडु में चेन्नई मध्य भी एक शहरी क्षेत्र है जहां इस बार पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले मतदान में 2.67 फीसदी कमी दर्ज की गई है। इस संसदीय क्षेत्र में 2014 में जहां 61.36 फीसदी मतदान हुआ था वहां इस 2019 में 58.69 फीसदी हुआ है।

महाराष्ट्र के अमरावती में 2019 में 60.36 फीसदी मतदान हुआ है जबकि 2014 में 62.23 फीसदी हुआ था। इस प्रकार पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार मतदान 1.87 फीसदी कम हुआ है।


उत्तर प्रदेश के अमरोहा में पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार मतदान में मामूली इजाफा हुआ है। इस संसदीय क्षेत्र में 2014 में जहां 71 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया वहां 2019 में 71.04 फीसदी लोगों ने वोट डाला।

मतदान के आंकड़े बुलंदशहर में काफी दिलचस्प रहे हैं जहां 2014 के मुकाबले इस बार 4.43 फीसदी ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार को प्रयोग किया है। इस बार इस संदीय क्षेत्र में 62.73 फीसदी मतदान हुआ है।

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में 2014 में जहां 80.2 फीसदी मतदान हुआ था वहां इस बार 78.71 मतदान हुआ है जोकि पिछले लोकसभा चुनाव से 1.49 फीसदी कम है।

आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ के बस्तर में मतदान में 2014 के मुकाबले अप्रत्याशित 6.77 फीसदी का इजाफा हुआ है। लोकसभा चुनाव 2019 में इस क्षेत्र में 66.84 फीसदी मतदान हुआ है।

लोकसभा चुनाव 2019 के प्रथम चरण में 11 अप्रैल को हुए मतदान के आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में इस बार पिछले लोकसभा चुनाव 2014 के मुकाबले मतदान 4.94 फीसदी घटकर 67.26 फीसदी रह गया। इसके विपरीत तिरुपति में 2.48 फीसदी का इजाफा हुआ है। तिरुपति में 2014 में 76.6 फीसदी मतदान हुआ था जबकि 2019 में 79.08 फीसदी मतदान हुआ है।

महाराष्ट्र के नागपुर में इस बार 2014 के मुकाबले 2.31 फीसदी कम मतदान हुआ है। इस संसदीय क्षेत्र में 2014 में जहां 57.05 फीसदी मतदान हुआ था वहां इस बार 54.74 फीसदी हुआ है।

ओडिशा के पिछड़े इलाके कालाहांडी में 2014 के मुकाबले इस बार मतदान 0.27 फीसदी बढ़कर 75.97 फीसदी रहा।

लेकिन, उत्तराखंड के हरिद्वार में मतदान में 2.71 फीसदी की कमी आई है जोकि एक शहरी क्षेत्र है।

2014 में इस क्षेत्र में जहां 71.63 फीसदी मतदान हुआ था वहां इस बार 68.92 फीसदी हुआ है।

इलाहाबाद स्थित जी.बी. पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के बद्री नारायण ने कहा, “शहरी क्षेत्र में इस बार बेहतर मतदान होगा, जिसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा।”

वहीं, दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर रहे निसार-उल-हक ने भी माना कि शहरी क्षेत्र में भाजपा को लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि भाजपा के चुनावी अभियान में राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले को उभारा जा रहा है जिसका फायदा उसे ग्रामीण क्षेत्रों में भी मिलेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में बसपा-सपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच ग्रामीण क्षेत्र का वोट विभाजित हो रहा है और बिहार में भी महागठबंधन को ग्रामीण क्षेत्र का वोट मिलेगा।

इन दोनों क्षेत्रों में भाजपा ने 2014 में अच्छा प्रदर्शन किया था।

उधर, राजनीतिक टिप्पणीकार निलांजना मुखोपाध्याय ने कहा कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के मतदान के पैटर्न पर कुछ कहना मुश्किल होगा क्योंकि दोनों क्षेत्रों के अपने मुद्दे हैं।

उन्होंने कहा, “अगर आप आर्थिक मसलों को देखें तो इनसे शहर और गांव दोनों की आबादी प्रभावित है।”

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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