समावेशी भावना विकास का मूल-मंत्र : कोविंद

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 नई दिल्ली, 25 जनवरी (आईएएनएस)| राष्ट्रपति रामनाथ गोविंद ने शुक्रवार को यहां कहा कि समावेशी भावना, भारत के विकास का मूल-मंत्र है।

  उन्होंने कहा कि देश के संसाधनों पर सभी का बराबर का हक है, चाहे कोई किसी भी समूह का हो, किसी भी समुदाय का हो, या किसी भी क्षेत्र का हो। राष्ट्रपति ने 70वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा, “भारत की बहुलता, हमारी सबसे बड़ी ताकत है। हमारी विविधता, लोकतंत्र और विकास पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल है।”


उन्होंने कहा, “इसी माह संविधान-संशोधन के द्वारा, गरीब परिवारों के प्रतिभाशाली बच्चों को शिक्षा एवं रोजगार के विशेष अवसर उपलब्ध कराए गए हैं। सामाजिक न्याय और आर्थिक नैतिकता के मानदंडों पर जोर देकर, समावेशी विकास के कार्य को और भी व्यापक आधार दिया गया है। टेक्नॉलॉजी और नई सोच के बल पर, समाज के हर वर्ग के लोग विकास की यात्रा में शामिल हो रहे हैं।”

उन्होंने कहा, “हमने अभाव को प्रचुरता में बदला है। आज देश में खाद्यान्न का प्रचुर उत्पादन हो रहा है। रसोई गैस आसानी से मिल रही है। फोन कनेक्शन लेना हो या पासपोर्ट बनवाना हो, बैंक में खाता खुलवाना हो या दस्तावेजों को प्रमाणित करना हो, इन सभी क्षेत्रों में सुधार और बदलाव दिखाई दे रहे हैं। महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में हो रहे सामाजिक बदलाव, अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। हमारी बेटियां शिक्षा, कला, चिकित्सा और खेल-कूद जैसे क्षेत्रों के अलावा तीनों सेनाओं और रक्षा विज्ञान जैसे क्षेत्रों में भी अपनी विशेष पहचान बना रही हैं।”

राष्ट्रपति ने कहा, “21वीं सदी के लिए, हमें अपने लक्ष्यों और उपलब्धियों के नए मानदंड निर्धारित करने हैं। अब हमें गुणवत्ता पर और अधिक ध्यान देना होगा। हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें हर बेटी-बेटे की विशेषता, क्षमता और प्रतिभा की पहचान हो।”


उन्होंने कहा, “पारस्परिक सहयोग और साझेदारी के आधार पर ही समाज का निर्माण होता है। सहयोग और साझेदारी की यह भावना ही, पूरे विश्व को एक ही परिवार मानने वाले, ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के आदर्श का भी आधार है।”

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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