सर्वोच्च न्यायालय में खारिज हो चुका है राहुल की नागरिकता का मुद्दा

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 नई दिल्ली, 30 अप्रैल (आईएएनएस)| कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नागरिकता का सवाल पहले भी उठ चुका है और उन्होंने इस मुद्दे पर उस समय जोरदार तरीके से बचाव किया था, जब इसे संसद की आचार समिति के समक्ष उठाया गया था।

 वर्ष 2016 में इस मामले को संसद की आचार समिति में उठाया गया था, जिसके अध्यक्ष भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी हैं। राहुल गांधी उस समय कांग्रेस अध्यक्ष नहीं थे, और उन्होंने कथित तौर पर समिति के समक्ष कहा था कि वह चकित हैं कि उनकी ब्रिटिश नागरिकता की शिकायत का संज्ञान लिया गया है, जबकि यह व्यवस्थित भी नहीं। उन्होंने यह भी कहा था कि इस तरह का कोई आवेदन ब्रिटिश गृह विभाग में उपलब्ध होगा। रपटों के अनुसार, उन्होंने कहा था कि उन्होंने कभी भी ब्रिटिश नागरिकता पाने की कोशिश नहीं की और यह शिकायत उनकी छवि खराब करने की एक साजिश का हिस्सा है।


गांधी की नागरिकता का मुद्दा भाजपा के राज्यसभा सदस्य सुबह्मण्यम स्वामी ने उठाया था। इस पर कांग्रेस नेता ने उस समय शिकायतकर्ता को चुनौती दी थी कि वह अपने आरोप के समर्थन में उनके ब्रिटिश पासपोर्ट की संख्या और प्रासंगिक दस्तावेज पेश करे। रिकॉर्ड के अनुसार, इस मामले को भाजपा सांसद महेश गिरी ने भी उठाया था।

भाजपा नेताओं ने कहा था कि ब्रिटेन स्थित बैकॉप्स के वार्षिक रिटर्न में राहुल को एक ब्रिटिश नागरिक घोषित किया गया है। राहुल को इस कंपनी से जोड़ा जा रहा है। कांग्रेस नेता ने बाद में इसे ‘अनजाने में हुई गलती’ और ‘लिखने में हुई गलती’ बताया था।

आचार समिति के एक सदस्य भगत सिंह कोशियारी ने आईएएनएस से कहा कि पिछले दो वर्षो में संसद की आचार समिति की कोई बैठक नहीं हुई। “मुझे नहीं लगता कि समिति की कोई बैठक पिछले दो सालों में हुई है।”


स्वामी ने इसके पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह कहते हुए लिखा था कि कांग्रेस नेता की नागरिकता समाप्त कर दी जाए। उन्होंने पत्र में कहा था कि गांधी ने लंदन में एक निजी कंपनी चलाने के लिए खुद को 2003-2009 की अवधि में ब्रिटिश नागरिक घोषित किया है।

पत्र में कहा गया था, “कंपनी का नाम बैकॉप्स लिमिटेड है और इस कंपनी के निदेशक और सचिव मौजूदा लोकसभा सदस्य राहुल गांधी हैं।”

इसके बाद दिसंबर 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता के संबंध में पेश किए गए सबूतों को खारिज कर दिया था। याचिका वकील एम.एल. शर्मा ने दायर की थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने फर्जी बताया था। न्यायालय ने उस समय दस्तावेजों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए थे।

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एच.एल. दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा था, “आपको कैसे पता कि ये दस्तावेज प्रामाणिक है?”

शर्मा द्वारा सुनवाई पर जोर दिए जाने पर न्यायमूर्ति दत्तू ने शर्मा से कहा था, “मेरी सेवानिवृत्ति के बस दो दिन शेष बचे हैं। आप मुझे मजबूर मत कीजिए कि मैं आपके ऊपर जुर्माना लगा दूं।”

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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