उप्र : बाल कुमार सपा-बसपा का नहीं, भाजपा का नुकसान करेंगे

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बांदा, 28 मार्च (आईएएनएस)| साल 2009 में मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रहे मृत दस्यु सरगना ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल अब बांदा-चित्रकूट क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। इलाहाबाद के भाजपा सांसद श्यामाचरण गुप्त को सपा प्रत्याशी घोषित किए जाने से नाराज बाल कुमार ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है।

बाल कुमार के कांग्रेस से चुनाव लड़ने पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बाल कुमार कुर्मी वोट हासिल कर सपा-बसपा गठबंधन का कोई नुकसान नहीं कर पाएंगे, बल्कि इससे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का जबर्दस्त नुकसान होगा।


स्वतंत्रता सेनानी और बुजुर्ग राजनीतिक विश्लेषक पूर्व मंत्री जमुना प्रसाद बोस (जे.पी. बोस) बताते हैं कि ‘कुर्मी (पटेल) समाज के मतदाता दलीय राजनीति से हटकर लोकसभा या विधानसभा चुनाव में अपनी बिरादरी के पक्ष में एकजुटता से मतदान करते आए हैं।

रामसजीवन के न रहने पर अब बांदा और चित्रकूट जिले का कुर्मी भाजपा से मानिकपुर विधायक आर.के. सिंह पटेल को अपना नेता मानते हैं। जब आर.के. पटेल सपा और बसपा रहे तो खुलकर कुर्मी समाज उनके साथ खड़ा रहा। अब भाजपा में हैं तो बाल कुमार की प्रत्याशिता के पहले सभी भाजपा के पक्ष में थे, लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने बाल कुमार को उम्मीदवार घोषित किया, कुर्मी (पटेल) समाज ने भी पलटी मार ली है।

इस तरह, भाजपा के साथ जुड़ने वाला कुर्मी मतदाता अधिसंख्यक तादाद में कांग्रेस नहीं, बल्कि बाल कुमार के साथ जाकर भाजपा को नुकसान पहुंचाएगा। वैसे भी सपा-बसपा गठबंधन से भाजपा सांसद श्यामाचरण गुप्त की प्रत्याशिता से भाजपा का वैश्य मतदाता गठबंधन की ओर मुड़ता जा रहा है। इस कारण अब भाजपा की राह आसान नहीं रही। थोड़ा कसर जो बाकी था, वह बाल कुमार ने पूरा कर दिया है।


बोस हालांकि कहते हैं, “बाल कुमार के जीतने के आसार बहुत कम हैं, लेकिन कुर्मी बिरादरी को इकट्ठा होने का एक बार फिर से विकल्प जरूर मिल गया है।”

एक अन्य राजनीति विश्लेषक रणवीर सिंह चौहान कहते हैं कि बुंदेलखंड पर अस्सी के दशक में वामपंथ का कब्जा था। तब दलित और कुर्मी गठजोड़ से सीपीआई से रामसजीवन सांसद चुने गए थे। नब्बे के दशक में जब रामसजीवन बसपा के शामिल हुए, तब भी यह गठजोड़ कायम रहा और बसपा से दोबार सांसद हुए। यही आलम रामसजीवन के न रहने पर आर.के. सिंह पटेल के साथ रहा। बसपा में रहे तो कुर्मी मतदाता उनके साथ रहा और मंत्री तक बने, जब सपा में गए तो सांसद चुने गए। अब भाजपा में हैं तो मानिकपुर से विधायक हैं।

यह कुर्मी बिरादरी की लामबंदी का ही परिणाम रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं कि यदि भाजपा आर.के. पटेल को चुनाव लड़ाती तो गठबंधन से कांटे की लड़ाई होती। कांग्रेस का वजूद बहुत कम है, लेकिन कुर्मी मतदाता का एकमुश्त बाल कुमार के साथ जाना निश्चित है, जिससे भाजपा का ही नुकसान होना तय माना जा रहा है।

उधर, कांग्रेस के प्रत्याशी बाल कुमार पटेल ने आरोप लगाया, “मेरे भाई (मृत डकैत ददुआ) की कृपा से विधायक, सांसद और मंत्री बनने वाला एक भाजपा विधायक मुझे व मेरे परिवार को डकैतों से जोड़कर मीडिया और जनता को गुमराह कर रहे हैं, जबकि बसपा में विधायक रहने के दौरान पुलिस ने उन्हीं के खिलाफ ददुआ को संरक्षण देने (आईपीसी-216) का मुकदमा दर्ज किया था।”

उन्होंने कहा कि वह पूरी ताकत से चुनाव लड़ने जा रहे हैं और बांदा-चित्रकूट की सीट कांग्रेस की झोली में डालकर रहेंगे।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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