51 फीसदी ग्रामीण जनता को लगता है, कोविड-19 चीन की साजिश है

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नई दिल्ली, 22 दिसंबर (आईएएनएस)। ग्रामीण भारत में 51 प्रतिशत से अधिक लोगों को लगता है कि कोविड-19 महामारी चीन की साजिश है।

गांव कनेक्शन ने रैपिड सर्वे के माध्यम से यह पता लगाने की कोशिश की कि ग्रामीण जनता कोविड-19 के बारे में क्या सोचती है, कैसे वे बीमारी से खुद को बचा रहे हैं और कैसी जागरूकता है।


51 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि यह चीन की साजिश है। 22 प्रतिशत ने कहा कि सावधानियों का न पालन करना लोगों की विफलता है, जबकि लगभग 18 प्रतिशत ने इसे सरकार की विफलता बताया। कोरोनावायरस के उच्च प्रसार वाले राज्यों में, ज्यादातर लोगों (23 प्रतिशत) ने इसे मध्यम प्रसार वाले राज्यों (14.5 प्रतिशत) और निम्न प्रसार राज्यों (16.9 प्रतिशत) की तुलना में शासन की विफलता के रूप में देखा।

इसके अलावा, उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि कोरोनोवायरस अभी भी उनके आसपास है। उत्तरदाताओं में से लगभग 20 फीसदी ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि कोरोनोवायरस अभी भी उनके आसपास है। लगभग 15 फीसदी ने कहा कि उन्हें पता नहीं है कि वायरस अभी भी आसपास है, जबकि 1.3 फीसदी ने वायरस को एक धोखा माना।

कोविड-19 के प्रति ग्रामीण भारत की धारणाओं को जानने के लिए, उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि कोविड एक वास्तविक बीमारी या फिर अफवाह है? 64 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें लगता है कि कोविड-19 एक वास्तविक बीमारी है। यही विचार मध्यम या निम्न प्रसार वाले राज्यों की तुलना में उच्च प्रसार राज्यों (74.8 प्रतिशत) में ज्यादा देखा गया। इसके अलावा 18.9 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कोविड-19 को एक घातक बीमारी के रूप में माना, जो अन्य राज्यों की तुलना में कम प्रसार वाले राज्यों (29.5 फीसदी) में अधिक था।


लगभग 8.9 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने सोचा कि कोरोनावायरस रोग एक अफवाह है और 11 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि यह केवल मामूली सर्दी, खांसी और फ्लू है।

यह पूछने पर कि क्या उनके आसपास के लोगों ने घरों से बाहर निकलते समय फेस मास्क पहना था, लगभग 58 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने ऐसा देखा। उच्च प्रसार वाले राज्यों में उत्तरदाताओं के एक बड़े अनुपात ने बताया कि उनके आस-पास के लोग आमतौर पर हर समय फेस मास्क पहने थे, जब वे सार्वजनिक स्थानों पर बाहर जाते थे।

जब कोरोनोवायरस भारत में आया, तो लोगों में ये डर भी फैल गया कि ये चिकेन और अंडे से फैल सकता है, जिसके चलते कई लोगों ने ये दोनों चीजें खाना बंद कर दिया। इस कारण यह व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ।

इस बीच, इम्युनिटी बढ़ाने के लिए लोगों ने घर पर बने गिलॉय या पैकेज्ड इम्युनिटी बूस्टिंग प्रोडक्ट्स आदि का सेवन करना शुरू कर दिया। यह पूछे जाने पर कि क्या लोग अब इम्युनिटी पर ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं, जैसे कि च्यवनप्राश, गिलॉय, आदि, तो आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने बताया कि वे इस तरह के पैकेज्ड इम्युनिटी बूस्टिंग उत्पादों को खरीदने और उपभोग करने पर अब अधिक पैसा खर्च कर रहे हैं।

यह पूछे जाने पर कि कोरोना के कारण खाने की आदतों में किस तरह के बदलाव आए हैं, लगभग 70 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने बाहर का खाना बंद कर दिया है। 33 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि उन्होंने अधिक सब्जियां खानी शुरू की हैं, जबकि 30 प्रतिशत ने कहा कि वे अधिक फल खा रहे हैं।

मांसाहारी भोजन खाने वाले परिवारों से जब पूछा गया कि क्या अब वो ऐसा खाना खाते हैं तो लगभग 40 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि इसमें बदलाव आया है। अब वो शाकाहारी खाद्य पदार्थों में ज्यादा खर्च कर रहे हैं। ये मत अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग थे। उच्च प्रसार वाले राज्यों में मांसाहारी भोजन में 47.9 फीसदी की कमी आई, मध्यम प्रसार वाले राज्यों में 40.9 फीसदी और निम्न प्रसार वाले राज्यों में 31.3 प्रतिशत बदलाव देखा गया। इस बीच, लगभग नौ फीसदी परिवारों ने बताया कि कोविड-19 अवधि के दौरान वे नॉन-वेज आइटम नहीं खा रहे थे।

–आईएएनएस

एसकेपी/एसजीके

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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