देश भर में बेरोज़गारी से लोग बेहाल हैं। सरकार रोज़गार के सही आंकड़े उपलब्ध कराने में नाकाम रही है और विपक्ष लगातार इसे लेकर हमलावर है। गौरतलब है कि पिछले दिनों बेरोजगारी के आंकड़े को लेकर एनएसएसओ(NSSO) की रिपोर्ट चर्चा में थी, जिसे केंद्र सरकार ने हाल ही में जारी होने से रोक दिया था। आम चुनावों के कारण सरकार द्वारा सर्वे को जारी करने में की जा रही देरी को लेकर इस साल जनवरी में आयोग के दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था। इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने इस पर रिपोर्ट छापी है।
3 करोड़ से ज्यादा खेतिहर मजदूर बेरोजगार
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में 1993-1994 के बाद पहली बार पुरुष कामगारों की संख्या घटी है। वहीं, बीते 6 साल के दौरान ग्रामीण भारत में काम करने वाले करीब 3 करोड़ से ज्यादा खेतिहर मजदूर बेरोजगार हुए हैं। वित्तीय वर्ष 2011-12 से लेकर 2017-18 के बीच हुई यह गिरावट करीब 40% की है। इंडियन एक्सप्रेस ने नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के सर्वेक्षण का हवाला देते हुए यह जानकारी दी है।
पुरुष कर्मियों की संख्या में गिरावट
रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष कर्मियों की संख्या में गिरावट पहली बार 1993-94 में ही देखने को मिली थी। तब ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में इनकी संख्या 6.4 फीसदी और 4.7 प्रतिशत की कमी आई थी। उसके बाद 1999-2000, 2004-05 और 2011-12 की रिपोर्टों में यह बढ़ी थी। लेकिन अब यह संख्या फिर एक बार घटी है।
इस रिपोर्ट में NSSO द्वारा साल 2017-2018 में किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के हवाले से बताया गया है कि देश में पुरुष कामगारों की संख्या तेजी से घट रही है। इस दौरान करीब 3.2 करोड़ अनियमित मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं गैर-कृषि कार्यों में कार्यरत अनियमित श्रम कार्य बल में 7.3% पुरुष बेरोजगार हुए, जबकि महिलाओं के लिए यह दर 3.3% रही। यानि आंकड़े दिखाते हैं कि पिछले 5 सालों की तुलना में 2017-18 में देश में रोजगार के अवसर बहुत कम हुए हैं। सर्वे के अनुसार 2011-12 से राष्ट्रीय पुरुष कार्यबल 30.4 करोड़ से घटकर 28.6 करोड़ हो गया है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि भारत का राष्ट्रीय कार्यबल 4.7 करोड़ घट गया है जो सऊदी अरब की कुल जनसंख्या से भी अधिक है।
अब देखना यह है के 2019 लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी कितना बड़ा मुद्दा होगी और विपक्ष इसे कैसे उठाएगा। लेकिन इतना तय है कि ये मुद्दा भाजपा के गले की फांस जरूर बन गया है।