नई दिल्ली। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) द्वारा आरटीआई एक्ट के तहत प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय को लाने का फैसला सुनाना कोई मुद्दा नहीं है और इसके बदले यह प्रक्रिया एक न्यायिक निर्णय से जुड़ी हुई है।
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा, “प्रधान न्यायाधीश निश्चित तौर पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसले सुनाने वाली पीठ में हो सकते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रधान न्यायाधीश के पद को आरटीआई के दायरे में लाने का फैसला दिया था। फैसला कार्यालय से जुड़ा है, किसी एक व्यक्ति से नहीं।”
जब हितों के टकराव के मुद्दे पर पूछा गया तो द्विवेदी ने कहा कि हितों का टकराव बिल्कुल नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पारदर्शिता के लिए न्यायापालिका को खत्म नहीं किया जा सकता है, लेकिन जोर दिया कि कोई भी अपारदर्शी प्रणाली नहीं चाहता है।
शीर्ष कोर्ट की पीठ ने कहा, “कोई अज्ञानता की स्थिति में रहना नहीं चाहता.. लेकिन हम सब के सामने सवाल है कि पारदर्शिता के नाम पर आप संस्थान को नष्ट नहीं कर सकते।”
द्विवेदी ने एक उदाहरण का हवाला दिया कि अगर किसी को शीर्ष कोर्ट के कॉलेजियम से समस्या है तो वह इसे शीर्ष कोर्ट में चुनौती देता है।
द्विवेदी ने कहा, “इसे न्यायाधीशों द्वारा ही सुना जाएगा।”
हाल में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम से जुड़ी याचिकाओं के एक समूह पर पक्षपात के मद्देनजर सुनवाई से इनकार कर दिया था। निर्णय के अनुसार, न्यायमूर्ति मिश्रा ने न्यायपालिका और प्रणाली के हित में इस पर सुनवाई से इनकार किया था।
वरिष्ठ वकील नरेंद्र हुड्डा ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश के पीठ का हिस्सा होने पर कोई हितों का टकराव नहीं है। पीठ द्वारा कल (गुरुवार) फैसला सुनाया जाना निर्धारित है।
हुड्डा ने कहा, “प्रधान न्यायाधीश के पीठ का हिस्सा होना मामले की न्यायिक निर्णय की प्रक्रिया है।”
उन्होंने एक उदाहरण का हवाला दिया कि अगर एक जिला न्यायाधीश को हाईकोर्ट की पीठ द्वारा हटा दिया जाए तो राहत पाने के लिए न्यायाधीश को उसी हाईकोर्ट के समक्ष जाना होगा।
हुड्डा ने कहा, “इसलिए वर्तमान मामला प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय से जुड़ा है और किसी एक व्यक्ति से नहीं।”