क्या है आरक्षण का 13 पॉइंट और 200 पॉइंट रोस्टर प्रणाली, विस्तार से समझें

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केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद सरकार ने 13 की जगह 200 पॉइंट रोस्टर लागू करने के लिए अध्यादेश की मंजूरी देने के साथ इसको लागू करने की बात कह दी है। सरकार के 13 प्‍वाइंट रोस्‍टर के खिलाफ विभिन्‍न संगठनों ने 5 मार्च को भारत बंद भी बुलाया था। वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक यह फैसला अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा ओबीसी को विश्‍वविद्यालय की नौकरी में उचित प्रतिनिधितत्‍व के मकसद से लिया गया है।

हमारे देश में आरक्षण शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और नौकरी पर लागू होता है। फिलहाल भारत में केंद्र सरकार की तरफ से 59.5% आरक्षण की व्यवस्था लागू है। इसमें अनुसूचित जाति(SC) को 15%, अनुसूचित जनजाति को(ST) 7.5%, अन्य पिछड़ा वर्ग(OBC) को 27% और आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था है। कुछ राज्यों में स्थिति इस से अलग भी है। वो उस राज्य की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। जैसे दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु में 69% आरक्षण है।


क्या है 13 पॉइंट रोस्टर विवाद?

सबसे पहले तो यह जानना ज़रूरी है कि आखिर रोस्टर क्या है। अमूमन ऑफिस में काम करने वाले लोगों ने यह शब्द अक्सर सुना होगा। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि शिफ्ट चार्ट, ड्यूटी चार्ट या फिर रोस्टर, लेकिन इस शब्द के और भी मायने हैं। रोस्टर दरअसल एक तरीका होता है जिससे यह निर्धारित किया जाता है किसी विभाग में निकलने वाली वेकंसी किस वर्ग को मिलेगी। मसलन आरक्षित वर्ग या फिर अनारक्षित वर्ग।

साल 2005 में तत्कालीन यूपीए सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने विश्विद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को कहा कि विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में लागू आरक्षण व्यवस्था की खामियों को दूर किया जाए। यूजीसी ने प्रोफेसर रावसाहब काले की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। इस कमेटी ने डीओपीटी के 2 जुलाई 1997 के दिशानिर्देश के अनुसार 200 पॉइंट रोस्टर लागू किया।



इस कमेटी के मुताबिक विश्विद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर तीन स्तर की भर्तियां की जाएंगी। इसके लिए किसी विभाग को एक इकाई न मानकर विश्विद्यालय या कॉलेज को एक इकाई माना जाएगा क्योंकि भर्तियां कॉलेज या विश्विद्यालय करता है कोई एक विभाग नहीं।

इसको ऐसे समझिए कि अगर किसी विश्विद्यालय में 100 रिक्त पद हैं, तो इसमें से अनुसूचित जाति को 15, अनुसूचित जनजाति को 7.5 और ओबीसी को 27 जगहें मिलनी चाहिए। मतलब 200 पॉइंट रोस्टर का मतलब था कि विश्वविद्यालय में निकलने वाली 200 जगहों में 30 अनुसूचित जाति, 15 अनुसूचित जनजाति, 54 ओबीसी और 101 अनारक्षित वर्ग के लिए रखी जाएंगी।

इस व्यवस्था को बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के छात्र विवेकानंद तिवारी ने इलाहबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने 2016 में यूजीसी के फैसले को पलट दिया। आदेश दिया गया कि विश्वविद्यालयों में भर्ती के लिए विभाग को ही इकाई माना जाए। और इसी के साथ 13 पॉइंट रोस्टर लागू हो गया।

ये पूरा नंबर गेम है। इसको ऐसे समझिए कि किसी विभाग में भर्ती के लिए कम से कम चार पद होने पर ही आरक्षण व्यवस्था लागू होगी। इन चार में से एक पद ओबीसी के लिए आरक्षित होगा। चार को अगर प्रतिशत आरक्षण से भाग दें तो अनुसूचित जाति और जनजाति को कोई हिस्सा नहीं मिलता। क्योंकि 4 का 15 प्रतिशत 0.60 है जो एक से कम है। ऐसे ही अनुसूचित जाति का हिस्सा 7.5 प्रतिशत 0.37 है। ऐसे में इनके लिए कोई आरक्षण नहीं होगा। संख्या 4 का ओबीसी का हिस्सा यानी 27 प्रतिशत 1.08 है जो कि एक से ज्यादा है। ऐसे में चार पद होने पर ओबीसी के लिए एक सीट आरक्षित होगी।

13 पॉइंट रोस्टर के मुताबिक विभाग में निकलने वाली 14 जगहों में पहली तीन अनारक्षित वर्ग के लिए, चौथी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए, पांचवी और छठी अनारक्षित, सातवीं जगह अनुसूचित जाति, आठवीं जगह अन्य पिछड़ा वर्ग, नवीं, दसवीं और ग्यारहवीं जगह अनारक्षित, बारहवीं जगह ओबीसी, तेरहवीं जगह अनारक्षित और चौदहवीं जगह अनुसूचित जनजाति के लिए होगी।

13 पॉइंट रोस्टर के मुताबिक अनुसूचित जनजाति तक आरक्षण देने के लिए कम से कम विभाग में 14 भर्तियां निकालनी होंगी। लेकिन समस्या ये है कि एक विभाग में अधिकांश समय दो-तीन से ज्यादा भर्तियां नहीं निकलती हैं। ऐसे में इस व्यवस्था के चलते यूनिवर्सिटी की प्रोफेसरशिप में आरक्षण बमुश्किल लागू हो पा रहा था।

अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 95.2% प्रोफेसर, 92.9% एसोसिएट प्रोफेसर और 66.27% असिस्टेंट प्रोफेसर सामान्य कैटेगिरी से आते हैं। मतलब ये वो लोग हैं जिन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिला है।

केंद्र सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी 2019 को 13 पॉइंट रोस्टर को ही लागू रखने का आदेश दिया। इसके विरोध में 5 मार्च को ओबीसी, एससी और एसटी संगठनों द्वारा भारत बंद बुलाया गया जिसके बाद ने इस आदेश को पलटने के लिए अध्यादेश लाने का आश्वासन दिया। 7 मार्च को हुई मोदी सरकार की आखिरी कैबिनेट मीटिंग में इस अध्यादेश को लाने का फैसला किया गया। इसका नाम रिजर्वेशन इन टीचर्स काडर अध्यादेश, 2019 रखा गया है। इस अध्यादेश के बाद से विश्वविद्यालयों की भर्तियों में 200 पॉइंट रोस्टर लागू हो जाएगा।


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