दिल्ली : 800 हेक्टेयर पर नहीं जलेगी पराली, सीएम ने खेतों में कमान संभाली

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नई दिल्ली, 13 अक्टूबर (आईएएनएस)। दिल्ली में पराली की समस्या से निपटने के पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार बायोडीकंपोजर घोल के छिड़काव की शुरुआत मंगलवार को की गई। यह शुरुआत नरेला क्षेत्र के हिरंकी गांव से हुई।

कोरोना काल में प्रदूषण को कम करने की मुहिम के तहत मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मंगलवार को स्वयं बाहरी दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में पहुंचे। यहां उन्होंने खेतों में जाकर पराली पर एक विशेष घोल का छिड़काव किया।


कोरोना के दौरान पराली से होने वाला वायु प्रदूषण जानलेवा हो सकता है। बीते 24 घंटों के दौरान दिल्ली में कोरोना से 40 व्यक्तियों की मौत हुई है। दिल्ली में कोरोना के कारण अभी तक 5809 व्यक्ति अपनी जान गंवा चुके हैं।

पराली पर विशेष घोल के छिड़काव की शुरुआत करते हुए केजरीवाल ने कहा, “दिल्ली के करीब 700 से 800 हेक्टेयर जमीन पर इस घोल का नि:शुल्क छिड़काव किया जाएगा। हमें इस मुद्दे पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने की जरूरत नहीं है, बल्कि सभी राज्य सरकारों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना होगा, तभी समस्या हल होगी।”

मुख्यमंत्री ने कहा, “यदि दिल्ली सरकार कर सकती है, तो बाकी राज्य सरकारें भी कर सकती हैं। दिल्ली में पिछले 10 महीने से प्रदूषण नियंत्रण में था, लेकिन पड़ोसी राज्यों में जलाई जा रही पराली का धुआं अब दिल्ली के अंदर पहुंचने लगा है। मुझे पराली से होने वाले प्रदूषण को लेकर दिल्ली के साथ पंजाब और हरियाणा के लोगों की भी चिंता है।”


दिल्ली में पराली की समस्या से निपटने के लिए पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार बायोडीकंपोजर घोल का पराली के डंठल पर छिड़काव किया जा रहा है। इस छिड़काव के लगभग 20 दिन बाद ये डंठल स्वयं गलकर मिट्टी में मिल जाएंगे और खाद बन जाएंगे। इसके इस्तेमाल से लोगों को पराली जलाने की जरूरत नहीं होती है। दिल्ली में करीब 10 दिन पहले इस घोल को बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी।

सारा घोल दिल्ली सरकार ने बनवाया है और इसके छिड़काव ट्रैक्टर और छिड़कने वालों समेत सभी इंतजाम दिल्ली सरकार ने किया है। किसान को इसके लिए कोई कीमत नहीं देने की जरूरत है।

केजरीवाल ने कहा, “अगले कुछ दिन के अंदर पूरे 800 हेक्टेयर जमीन पर घोल का छिड़काव हो जाएगा। अगली फसल बोने के लिए 20 से 25 दिन में जमीन तैयार हो जाएगी। अभी तक किसान अपने खेतों में पराली को जलाया करते थे। पराली जलाने की वजह से जमीन के उपयोगी बैक्टीरिया भी मर जाया करते थे। अब इस घोल का इस्तेमाल करने से किसानों को खाद का कम इस्तेमाल करना होगा और साथ ही किसानों के जमीन की उत्पादकता भी बढ़ेगी।”

मुख्यमंत्री ने कहा, “कई वर्षो से हर साल अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में पूरा उत्तर भारत प्रदूषण की वजह से दुखी हो जाता है, फिर भी ऐसा क्यों है कि सरकारों की तरफ से कोई कदम नहीं उठाए जाते हैं। हम सभी को मिलकर इस समस्या का समाधान निकालना है।”

पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक कैप्सूल बनाया है। इस कैप्सूल की मदद से घोल तैयार किया जाता है और घोल को खेतों में खड़े पराली के डंठल पर छिड़क देने के कुछ दिनों बाद वह गलकर खाद में बदल जाता है। डंठल से बनी खाद से जमीन के अंदर उर्वरा क्षमता में वृद्धि होती है।

–आईएएनएस

जीसीबी/एसजीके

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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