World Hepatitis Day 2020: वायरल हेपेटाइटिस के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए हर साल 28 जुलाई को हेपेटाइटिस डे मनाया जाता है। इस बार हेपेटाइटिस डे की थीम ‘हेपेटाइटिस फ्री फ्यूचर’ रखा गया है। हेपेटाइटिस बीमारी से पीड़ित लोगों को पीलिया होने का खतरा अधिक रहता है।
इस वायरस कुल 5 प्रकार के होते हैं जिससे हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई जैसी बीमारी होती है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिवर में सूजन व जलन की समस्या आती है जो गंभीर स्थिति में लिवर के कैंसर का कारण भी बन सकती है। इस बीमारी के प्रति जागरुकता फैलाने हेतु हर साल 28 जुलाई को वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे मनाया जाता है।
क्या होता है हेपेटाइटिस-
यह बीमारी किसी वायरस या बैक्टीरिया के इंफेक्शन, ज्यादा दवा खाने या फिर अल्कोहल के सेवन से लोगों को अपनी चपेट में ले लेती है। इस बीमारी के ज्यादातर मामले गर्मी व मॉनसून के दिनों में अचानक से बढ़ जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस मौसम में जीवाणु ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं।
आपको बता दें कि ये बीमारी के कारण लिवर सेल्स धीरे-धीरे डैमेज होने लगते हैं। हेपेटाइटिस बी का वायरस शरीर में मौजूद तरल पदार्थ जैसे कि ब्लड के जरिये पूरे शरीर में पहुंचता है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक तकरीबन 52 मिलियन लोग भारत में हेपेटाइटिस बी और सी के साथ जी रहे हैं।
हेपेटाइटिस के प्रमुख लक्षण-
-आंखों का पीला पड़ना
-पैरों में सूजन आना
-बेवजह थकान रहना
-मांसपेशियों में असहनीय दर्द
इसके अलावा, यूरिन का कलर डार्क येलो या फिर ग्रीन होना भी हेपेटाइटिस का संकेत हो सकता है। ज्यादा थकान होना, जांघों व घुटने में दर्द और खुजली भी इस बीमारी के लक्षण हो सकते हैं। पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द और सूजन, भूख न लगने और उल्टी जैसे आम लक्षण भी हेपेटाइटिस के मरीजों को हो सकते है।
इस बीमारी से कैसे करें बचाव-
विशेषज्ञों ने इसके प्रति सलाह दी है कि साफ-सफाई पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए। ब्रेश और रेजर को किसी के साथ साझा नहीं करें. जितना हो सके शराब के सेवन से उतना बचें। शुरुआत में हेपेटाइटिस का लक्षण नहीं समझ में आता है मगर कुछ दिनों बाद थकान, भूख न लगना, पेट दर्द, सिर दर्द, चक्कर, यूरिका का पीला होना जैसी समस्याएं आने लगती हैं।
दरअसल अभी तक भी इस खतरनाक बीमारी का कोई सटीक उपचार नहीं है। संक्रमण को धीरे-धीरे शरीर से खत्म करते हैं। इसलिए ऐसे में ये बेहद जरूरी हो जाता है कि साफ-सफाई के अलावा खान-पान आदि की आदतों में बदलाव किए जाएं। इसका सबसे उपयुक्त बचाव वैक्सीन ही है।