Kanshi Ram Death Anniversary: वो नेता जिसने दलितों के लिए सत्ता की राह आसान कर दी

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Kanshi Ram Death Anniversary: वो नेता जिसने दलितों के लिए सत्ता की राह आसान कर दी

Kanshi Ram Death Anniversary: भारतीय राजनीति में अगर दलितों को पहचान मिली है तो उसका श्रेय कांशीराम को जाना चाहिए। कांशीराम ने ये बता दिया था कि दलित भी सत्ता पर राज कर सकते हैं। उन्होंने 1984 में ‘बहुजन समाज पार्टी’ (BSP) की स्थापना की थी।

कांशीराम हमेशा मंचों से एक नारा देते थे, ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।’ मायावती को भी राजनीति में पहचान दिलाने का श्रेय कांशीराम को जाता है।

कांशीराम की जीवनी लिखने वाले बद्री नारायण कहते हैं, “कांशीराम की विचारधारा अंबेडकर की विचारधारा का ही एक नया संस्करण है। हिंदी क्षेत्र में जो सियासी व्यवस्था और उसका संचालन है उन्होंने उसे बहुत गहराई से महसूस किया था और इसमें बदलाव का रास्ता निकाला था कि राज्य की सत्ता पर काबिज होकर जनता का विकास करना और इसके ज़रिए सामाजिक बदलाव लाना।”


बद्री नारायण कहते हैं कि कांशीराम की मौत के बाद उनकी विचारधारा के मुताबिक मायावती सत्ता पर काबिज होने की लड़ाई तो लड़ रही हैं लेकिन सामाजिक बदलाव का काम उनसे छूटता जा रहा है। यानी आधा काम वो कर रही हैं बाकी का आधा काम दलित आंदोलन में लगे अन्य संगठनों को करना है।

बद्री नारायण कहते हैं, “दलितों की स्थिति में इतना परिवर्तन जरूर आया है कि एक मध्यमवर्ग विकसित हो गया है। सत्ता, प्रजातंत्र के जो फ़ायदे हैं वो दलितों के एक वर्ग तक पहुंचा है और वो शक्तिमान हुआ है। लेकिन ज़्यादातर दलितों का एक बड़ा भाग अभी भी पिछड़ा और दमित है। उनका सशक्तिकरण होने की जरूरत है।”

“आज कुछ दलित हिंसा की राजनीति में भी शामिल हो रहे हैं।कांशीराम अतिवाद का विरोध करते थे। वो कभी भी उग्रवादी चेतना से लैस नहीं थे। दलितों से कहते थे कि हिंसा के रस्ते पर मत जाओ। लेकिन आज कुछ दलित हिंसा के रस्ते पर भी जाते हैं जो कांशीराम की विचारधारा नहीं थी।”


कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब में एक दलित परिवार में हुआ था।

जब कांशीराम पढ़ लिख कर काम करने लगे तो एक दिन उनके साथ एक घटना हुई जिसने उनकी जिंदगी बदल डाली। जहां वो काम करते थे वहां के एक कर्मचारी ने अंबेडकर का जन्मदिन मनाने के लिए छुट्टी मांगी। इसके वजह से उसे भेदभाव का सामना करना पड़ा।

ये देखकर कांशीराम को बेहद बुरा लगा। इसी वजह से वो आगे चल कर सामाजिक कार्यकर्ता बनें और दलितों के हित में काम किया। उन्होंने आगे चलकर 1971 में अखिल भारतीय एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक कर्मचारी संघ की स्थापना की जो कि 1978 में ‘बामसेफ’ (BAMCEF) बन गया था। कांशीराम को ‘बहुजन नायक’ भी कहा जाता था।

9 अक्टूबर 2006 को हार्ट अटैक के कारण कांशीराम की दिल्ली में मृत्यु हो गई थी। उन्होंने भारतीय राजनीति में दलितों के लिए एक मजबूत नींव रखी थी।

कांशी राम की मौत को लेकर अक्सर मायावती पर आरोप लगता रहा है। कांशी राम की बहन स्‍वर्ण कौर ने भी मायावती पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि, “मायावती हमारी दुश्‍मन नंबर एक है। उसने मेरी भाई को बंधक बनाकर हत्‍या कर दी। उसने उन्‍हें परिवार वालों से नहीं मिलने दिया। मेरी बड़ी मां अपने बेटे का इंतजार करते हुए मर गई।”

“वो ऐसे ही नहीं मरा, तीन साल बीमार रहा, एक साल पहले उसने भाई की ज़ुबान बंद करा दी मायावती हमें जवाब दे कि क्यों एक साल मेरे भाई की जुबान बंद रही। मेरे भाई के साथ जो उसने किया वो मैं भूलूंगी नहीं जब तक मैं ज़िंदा हूं।”

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