मुस्लिम महिलाओं को बोलना चाहिए, अपनी जगह बनानी चाहिए : जामिया वेबिनार

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नई दिल्ली, 12 दिसंबर (आईएएनएस)। देश में प्रचलित लैंगिक भेदभाव और भारतीय महिलाओं, खासकर मुस्लिम महिलाओं की नागरिक स्वतंत्रता में आने वाली अड़चनों पर जामिया विश्वविद्यालय में एक खास चर्चा हुई। इस दौरान जोर दिया कि मुस्लिम महिलाओं को बोलना चाहिए। अपनी वह जगह बनानी चाहिए, जिससे वे वंचित हैं। इस चर्चा में जामिया की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर भी शामिल रहीं।

जामिया मिलिया इस्लामिया और भारतीय मुस्लिम महिलाओं के लिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की इन्क्यूबेटेड लीडर लैब (लेडबाई फाउंडेशन) ने डू वीमेन नीड सेविंग, जेंडर लॉ एंड पॉलिटिक्स विषय पर एक संयुक्त वेबिनार किया।


अपने संबोधन में, प्रोफेसर नजमा अख्तर ने भारतीय मुस्लिम महिलाओं पर विशेष ध्यान देने के साथ, देश में प्रचलित लैंगिक भेदभाव और भारतीय महिलाओं, खासकर मुस्लिम महिलाओं की नागरिक स्वतंत्रता में आने वाली अड़चनों पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाएं भारत में महिलाओं को आगे बढ़ने और उनके सपनों को हासिल करने में बड़ा योगदान कर सकती हैं।

उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमिता पर खास जोर दिया। उन्होंने लेडबाई द्वारा किए जा रहे अनूठे काम सराहना की और मुस्लिम महिलाओं का पेशेवर प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए इस संस्था के साथ सहयोग करने का प्रस्ताव रखा।

इस वेबिनार के चार पैनलिस्ट ऐसे वकील थे जो सामाजिक न्याय के मुद्दों पर मुख्य रूप से काम करती हैं। इनमें दिशा वाडेकर, मरियम फोजिया रहमान, नीमा नूर और वरिशा फरसत शामिल हैं। पैनल ने महिलाओं के सामने पेश आने वाली चुनौतियों और उनके समाधान को पेश किया।


वाडेकर ने इस बारे में विस्तार से बताया कि भारतीय महिलाओं को पेश आने वाले संरचनात्मक उत्पीड़न को देश में वर्तमान कानूनों से कैसे निपटा जा सकता है।

नूर ने मुस्लिम महिलाओं के साथ काम करते हुए एक वकील के रूप में अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने वास्तविक हालात को सामने रखते हुए कहा, महिलाओं को ऐसे कानूनी समाधानों की जानकारी नहीं है, जिससे वे ऐसी स्थितियों से निपट सकें।

एक अन्य पैनलिस्ट, रहमान ने भारतीय संदर्भ में नारीवादी कानून की तात्कालिकता के बारे में बात की। उन्होंने ज्यादा से ज्यादा महिलाओं बीच कानूनी समाधानों की जानकारी मुहैया कराने पर खास जोर दिया।

वरिशा ने मुस्लिम आवाजों की विविधता को सामने रखा, जिन्हें अक्सर एक रूढ़िवादी समझ के तौर पर पेश किया जाता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मुस्लिम महिलाओं को बोलना चाहिए और अपनी वह जगह बनानी चाहिए, जिससे वे वंचित हैं। उन्हें कोर्ट रूम, शैक्षिक व्यवस्था और अपने परिवारों में भी, अपनी जगह पाने की पुर जोर कोशिश करनी चाहिए।

जामिया के राजनीति विज्ञान विभाग की प्रोफेसर रुमकी बसु ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लैंगिक अंतर के आंकड़ों को रखते हुए, महिलाओं की स्थिति को अच्छे से पेश किया।

–आईएएनएस

जीसीबी/एएनएम

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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