नई शिक्षा नीति प्रबंधन पाठ्यक्रमों को मजबूत करेगी : निशंक

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शिक्षण संस्थानों से संबंधित वर्ष 2018-19 की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्नातकोत्तर स्तर के अधिकांश छात्र सामाजिक विज्ञान (2.75 लाख) तथा प्रबंधन (2.17 लाख) को तरजीह देते हैं। वहीं दूसरी ओर स्नातक स्तर पर, प्रबंधन स्ट्रीम में 4.05 लाख छात्रों के साथ कुल 6.5 लाख छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने गुरुवार को अखिल भारतीय प्रबंधन संघ के 25वें दीक्षांत समारोह में यह जानकारी दी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उन्होने कहा, “प्रबंधन हमारी प्राचीन सभ्यताओं का हिस्सा रहा है और अभी हाल के वर्षों में प्रबंधन शिक्षा और भारतीय व्यापार में बड़ा बदलाव आया है। इसी को ध्यान में रखते हुए हम नई शिक्षा नीति लेकर आएं, जो प्रबंधन पाठ्यक्रमों को और मजबूत करेगी।”


कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष अखिल भारतीय प्रबंधन संघ(एआईआईएमए) ने अपने 25वें दीक्षांत समारोह का ऑनलाइन आयोजन किया।

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री ने सभी छात्रों से कहा, “आपके प्रबंधन डिप्लोमा और प्रमाण पत्र ने आपको अपने भविष्य निर्माण के लिए एक मजबूत आधार दिया है। आप अपनी प्रबंधन शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए एआईआईएमए को चुनकर बहुत अच्छा निर्णय लिया,क्योंकि एआईआईएमए को भारत की प्रबंधन क्षमता के निर्माण में अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए हमेशा सराहा गया है।”

भारत में प्रबंधन के इतिहास की बात करते हुए निशंक ने कहा कि प्राचीन मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यताओं में भी प्रबंधकीय कुशलता के साक्ष्य मिलते हैं। सात हजार वर्ष पहले लिखी गई श्रीमतभागवत गीता हमें प्रबंधकीय ज्ञान की शिक्षा देती है। भारत के प्राचीन महाकाव्य रामायण और महाभारत, वेद, श्रुति, स्मृति तथा पुराण हमें प्रबंधन का महत्व सिखाते है। वेदों जैसे कि ब्राह्मण और धर्मसूत्रों में प्रबंधन, ज्ञान और कौशल का विवरण है। कौटिल्य जो कि चाणक्य के नाम से भी जाने जाते है, चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य के प्रधानमंत्री थे और सभी प्रशासनिक कुशलता के लिए प्रसिद्ध थे। लेकिन औपचारिक प्रबंधन शिक्षा का भारत में 50 वर्ष का इतिहास है। भारत में बिजनेस स्कूलों की संख्या में 1990 के बाद से वृद्धि हुई है।

डॉ निशंक ने कहा, “हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विकास की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि प्रबंधन के विद्यार्थी आगे आएं और ‘भारतीय विचारों के वैश्विककरण’ हेतु नीतियां विकसित करें।”


उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा भारत को 2025 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने की बात भी कही। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रबंधन शिक्षा एक प्रमुख घटक है। एनईपी में व्यवसायिक पाठ्यक्रमों जैसे प्रबंधन शिक्षा पर पर्याप्त बल दिया है। प्रबंधन शिक्षा बहुआयामी प्रकृति की है और इसे प्रभावी संचार, महत्वपूर्ण सोच, समझ और विश्लेषणात्मक कौशल की जरूरत है।

–आईएएनएस

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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