जानें क्या है अयोध्या के विवादित 67 एकड़ जमीन का मामला, जिसे लेकर सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी है

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जानें क्या है अयोध्या के विवादित 67 एकड़ जमीन का मामला, जिसे लेकर सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी है

केंद्र सरकार ने सोमवार को अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील कर इच्छा जताई कि विवादित जमीन (2.77 एकड़) के चारों और मौजूद 67 एकड़ की जमीन से जुड़े पुराने आदेश को वापस ले लिया जाए। सरकार ने 1991 में इस जमीन का अधिग्रहण किया था। केंद्र सरकार की याचिका में कहा गया है कि राम जन्मभूमि न्यास (RJN) ने इस ‘अधिक’ जमीन को वापस करने की मांग की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में आदेश दिया था कि 67 एकड़ के मामले में यथास्थिति कायम रहेगी। अब केंद्र सरकार की दलील है कि इस आदेश को वापस लिया जाए और जमीन इसके ‘मूल’ मालिकों- न्यास को वापस लौटाई जाए। इस मामले के राजनीतिक पहलुओं में जाने से पहले कुछ तकनीकी चीजें साफ होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने 1991 में जमीन का अधिग्रहण किया था।


राम जन्मभूमि न्यास की स्थापना विश्व हिंदू परिषद (WHP) की तरफ से 1993 में की गई है और खास तौर पर इसका मकसद विवादित स्थल पर मंदिर का निर्माण करना था। राम जन्मभूमि न्यास ने 67 एकड़ जमीन इसके मूल मालिकों को लौटाने की मांग की थी। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार इस मांग का समर्थन कर रही है।

हालांकि, अगर समय के हिसाब से घटनाक्रम की बात करें तो राम जन्मभूमि न्यास इस जमीन का मूल मालिक कैसे हो सकता है, जिसका 1991 में अस्तित्व ही नहीं था। दूसरी बात यह कि संयोगवश इस जमीन का अधिग्रहण कांग्रेस की सरकार की तरफ से किया गया। गौरतलब है कि 1991 में केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी।

सवाल यह भी है कि भाजपा सरकार को अचानक से 28 साल या लगभग 3 दशक के बाद 15 साल पुराने आदेश को वापस लेने संबंधी विचार क्यों सूझा है, जिससे राम जन्मभूमि न्यास को जमीन ‘लौटाई’ जा सके। अगर कोर्ट इस मांग को किसी तरह से स्वीकार करती भी है, तो भी इस मामले में सरकार को ही सक्रियता दिखानी पड़ेगी।


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