सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा

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नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अपराध बनाने वाले कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर शुक्रवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 में तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस कानून की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

न्यायमूर्ति एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ याचिका का परीक्षण करने पर सहमत हो गई है, लेकिन पीठ ने दहेज उत्पीड़न के उदाहरण देते हुए पूछा कि अदालत द्वारा गैर-कानूनी घोषित कृत्य को संसद द्वारा एक अपराध क्यों नहीं घोषित किया जा सकता है।


केंद्र सरकार ने 31 जुलाई को संसद से विधेयक पास कराकर तीन तलाक कह कर शादी तोड़ने को अपराध घोषित करवा दिया है। अब से ऐसा करना दंडनीय अपराध है, जिसके लिए तीन साल के कारावास का प्रावधान रखा गया है।

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इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर न्यायालय सुनवाई कर रहा था। मुस्लिम संगठनों की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि तीन तलाक को अपराध बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसे पहले ही असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है।


जमीयत उलेमा-ए-हिंद की तरफ से पेश वकील एजाज मकबूल ने कहा कि नया कानून ‘तलाक’ को परिभाषित करता है, जिसका अर्थ है ‘तलाक-ए-बिद्दत’ या फिर ऐसा ही कुछ मुस्लिम पति द्वारा दिया गया तात्कालिक और अपरिवर्तनीय तलाक।

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उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट 22 अगस्त, 2017 को दिए गए अपने फैसले में पहले ही इस प्रकार से दिए जाने वाले तलाक को असंवैधानिक घोषित कर चुका है। शीर्ष अदालत ने मुस्लिम पति द्वारा इस प्रकार से तालक दिए जाने को गैरकानूनी जरूर बताया था, लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में लाने के संबंध में कोई राय व्यक्त नहीं की थी।”

याचिका में कहा गया, “तीन तलाक जब मान्य ही नहीं है और ऐसा कहने से शादी टूटती ही नहीं है, तो फिर ऐसा कहना अपराध की श्रेणी में कैसे आ सकता है।”


सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक कानून पर केंद्र को भेजा नोटिस

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