खास है अयोध्या के ‘कोदंड श्री राम’ की मूर्ति, जानें इसके पीछे की कहानी

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को अयोध्या में भगवान राम की 7 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। भगवान श्रीराम की ये प्रतिमा लकड़ी की बनी हुई है। इसको बनाने में तीन साल से अधिक का समय लगा है। इसे अयोध्या शोध संस्थान के शिल्प संग्रहालय में स्थापित किया जाएगा।

भगवान राम की यह मूर्ति देखने में काफी आकर्षक है और पूरी तरह से लकड़ी से बनी हुई है। इसे कर्नाटक के कावेरी कर्नाटक स्टेट आर्ट्स और क्राफ्ट इंपोरियम से करीब 35 लाख में खरीदा गया है। इस पूरी मूर्ति को लकड़ी के एक ही टुकड़े से बनाया गया है और इसे काष्ठ कला बेहतरीन कृति मानी जा रही है।


‘कोदंड राम’ भगवान राम के पांच स्वरूपों में से एक

भगवान राम के इस स्वरूप ‘कोदंड राम’ को उनके पांच स्वरूपों में से एक माना जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम के जीवन को पांच चरणों में देखा जाता है। ये हैं- बाल राम, राजा राम, दुल्हा राम, वनवासी राम और कोदंड राम। देश के विभिन्न क्षेत्रों में इन अलग-अलग स्वरूपों की विशेष पूजा की जाती है।

उत्तर भारत में भगवान श्रीराम के पहले दो चरणों को विशेष महत्व दिया जाता है जबकि बिहार के मिथिला क्षेत्र में ‘दुल्हा राम’ को पूजा जाता है। इस क्षेत्र में राम और सीता कई मंदिरों में साथ नजर आते हैं और राम के हाथ में धनुष या हथियार नहीं होते। इसके बाद ‘बनवासी राम’ का विशेष महत्व है। इसमें राम, माता सीता और लक्ष्मण एक साथ नजर आते हैं। यह राम के जीवन का वह काल है, जब वे 14 साल के लिए वन में गये थे। इस स्वरूप को मुख्य तौर पर मध्य प्रदेश और मध्य भारत से जुड़े दूसरे क्षेत्रों में खूब पूजा जाता है।

इसके बाद कोदंड राम का स्वरूप है जिसका दक्षिण भारत में विशेष महत्व है। यह भगवान राम के जीवनकाल का वह अंश है जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था और वह युद्ध के लिए जाते हैं। इस स्वरूप में राम धनुष और बाणों के साथ अकेले नजर आते हैं।


धनुष का पर्यावाची है ‘कोदंड’

माना जाता है कि भगवान राम के धनुष का नाम कोदंड है, इसलिए इस प्रतिमा का नाम कोदंड श्रीराम रखा गया है। दक्षिण भारत में भगवान राम के कोदंड रूप यानी हाथ में धनुष-बाण लिए हुए स्वरूप की विशेष तौर पर पूजा की जाती है। महिलाएं श्रीराम के इस स्वरूप को आदर और सम्मान देती हैं क्योंकि वह स्त्री के सम्मान के लिए रावण से भिड़ गए थे।

दरअसल, जब रावण ने सीता-माता का अपहरण कर लिया था, तो उनकी तलाश करते हुए भगवान राम हाथ में धनुष कोदंड लिए दक्षिण भारत पहुंचे थे। यहीं से उन्होंने रावण के विरुद्ध युद्ध का बिगुल फूंक दिया था और उसका संहार करके सीता मां को सुरक्षित वापस लाए थे। इसलिए दक्षिण भारत में उन्हें ‘स्त्री रक्षक’ के रूप में पूजा जाता है।

भगवान श्रीराम का कोदंड एक चमत्कारिक धनुष था। कोदंड एक ऐसा धनुष था जिसका छोड़ा गया बाण लक्ष्य को भेदकर ही वापस आता था। कोदंड नाम से भिलाई में एक राम मंदिर ‘कोदंड रामालयम मंदिर’ भी है। भगवान श्रीराम दंडकारण्य में 10 वर्ष तक भील और आदिवासियों के बीच बिताए थे।

रामायण में कई जगहों पर हुआ है कोदंड का जिक्र

रामायण में कई जगहों पर भगवान राम के धनुष को कोदंड के रूप में संबोधित किया गया है।

कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बांधत सोह क्यों।

मरकत सयल पर लरत दामिनि कोटि सों जुग भुजग ज्यों॥

कटि कसि निषंग बिसाल भुज गहि चाप बिसिख सुधारि कै।

चितवत मनहुँ मृगराज प्रभु गजराज घटा निहारि कै॥

भावार्थ – कठिन धनुष चढ़ाकर सिर पर जटा का जूड़ा बांधते हुए प्रभु कैसे शोभित हो रहे हैं, जैसे मरकतमणि (पन्ने) के पर्वत पर करोड़ों बिजलियों से दो सांप लड़ रहे हों। कमर में तरकस कसकर, विशाल भुजाओं में धनुष लेकर और बाण सुधारकर प्रभु राम राक्षसों की ओर देख रहे हैं। मानो मतवाले हाथियों के समूह को आता देखकर सिंह उनकी ओर ताक रहा हो।

धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥

हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥

भावार्थ – जो देवताओं की रक्षा के लिए नाना प्रकार की देह धारण करते हैं और जो तुम्हारे जैसे मूर्खों को शिक्षा देने वाले हैं, जिन्होंने शिवजी के कठोर धनुष को तोड़ डाला और उसी के साथ राजाओं के समूह का गर्व चूर्ण कर दिया॥

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