रिजल्ट से पहले कन्हैया ने फेसबुक पर लिखी पोस्ट, कहा- दोस्त, पड़ोसी या रिश्तेदार को करें कॉल

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रिजल्ट से पहले कन्हैया ने फेसबुक पर लिखी पोस्ट, कहा- दोस्त, पड़ोसी या रिश्तेदार को करें कॉल

लोकसभा चुनाव के मतदान समाप्त हो चुके हैं और सबका इंतजार 23 मई का है जब मतों की गिनती शुरू होगी। इस बीच 17वीं लोकसभा चुनाव की सबसे चर्चित सीटों में से एक बेगूसराय पर भाकपा(CPI) के उम्मीदवार JNU छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने अपने फेसबुक वाल पर एक लंबी पोस्ट लिखी है। पोस्ट में कन्हैया ने 23 मई को आने वाले नतीजों को लेकर लोगों से अपील की है।

कन्हैया कुमार ने लिखा है, ‘कल चुनाव में चाहे कोई जीते, हमें इसका ध्यान रखना होगा कि आने वाले समय में समाज में नफ़रत की हर हाल में हार हो। पिछले पाँच सालों में मतभेद को जिस तरह ‘मन का भेद’ बनाया गया है, उसने न केवल लोकतंत्र को कमज़ोर किया है बल्कि समाज को नफ़रत की आग में झोंकने का काम भी किया है। नेताओं के चक्कर में आपस में लड़ने वालों को ठंडे दिमाग़ से सोचने की ज़रूरत है कि ऐसा करने से किनका फ़ायदा होता है और किनका नुकसान। असहमति को अपराध या अपमान मानने की मानसिकता न केवल लोकतंत्र को कमज़ोर बनाती है, बल्कि रिश्तों में भी ज़हर घोलती है। लोकतांत्रिक होने का मतलब है असहमति को सम्मान देना और यह बात चुनाव या राजनीति से आगे जाती है।


कन्हैया ने आगे लिखा, ‘देश का मतलब क्या है? जो देश में रहते हैं, वही देश बनाते हैं। उनके हित ही देश के हित हैं। अगर ग़रीब किसान, मज़दूर, विद्यार्थी, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला आदि को नुकसान पहुँचाने वाली नीतियाँ बनती हैं तो इसका नुकसान पूरे देश को होता है। इन नीतियों का विरोध करना देशप्रेम है न कि पीएम, सीएम या सांसद के विरोध को देश का विरोध मानकर सड़कों पर हिंसा करना। जिन्होंने देशप्रेम को नेताप्रेम बना दिया है, उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है। वे अपने फ़ायदे के लिए आपके रिश्तों में भी ज़हर घोल रहे हैं।’

पोस्ट के अंत में कन्हैया ने कहा, ‘जिस दोस्त, पड़ोसी या रिश्तेदार से राजनीतिक बहस के कारण आपकी बातचीत बंद हो गई है, उसे आज फ़ोन करें, उसके परिवार का हाल-चाल पूछें और बताएँ कि उनसे आपका रिश्ता इतना कमज़ोर नहीं कि वह ऐसी बातों से टूट जाएगा। असहमतियों का सम्मान करना ही लोकतंत्र की ख़ूबसूरती है। अगर ‘हम भारत के लोग’ किसी भी तरह की नफ़रत को अपने दिल से मिटा देंगे, तो समाज और राजनीति में भी नफ़रतवादी ताकतें अपने आप हारने लगेंगी।’


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