मूवी रिव्यू : आम मगर खास है फिल्म ‘मलाल’ की कहानी

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अक्सर फिल्मों की कहानी दो लोगों के बीच प्यार पर आधारित होती है। मलाल की भी कहानी कुछ ऐसी ही है लेकिन यह फिल्म आपको याद दिलाएगी 90 के दशक में आई फिल्मों की। ये फिल्म आपको उस दौर में ले लाएगी जहां लवस्टोरी हर कोई देखना पसंद करता है। चूंकि निर्देशक मंगेश हडावले ने कहानी का बैकड्रॉप 90 की फिल्मों का रखा है जिसमें टाइटैनिक और हम दिल दे चुके सनम जैसी रोमांटिक फिल्मों के पोस्टर भी देखने को मिलते हैं। फिल्म से मशहूर निर्देशक संजय लीला भंसाली की भांजी शर्मिन सहगल और जावेद जाफरी के बेटे मिजान जाफरी ने बॉलीवुड में कदम रखा है।

फिल्म की कहानी

कहानी की बात करें तो 90 के दशक के बैकड्रॉप में बनी फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी रोचक है। फिल्म उस दौर के हिसाब से चॉल की कहानी लगती है। दो नौजवानों के बीच प्यार को दर्शाती फिल्म की कहानी दर्शकों को इसलिए बांधने में कामयाब नजर आती है क्योंकि फिल्म का स्क्रीनप्ले जबरदस्त है। सेकंड हाफ में जरुर फिल्म थोड़ी स्लो हो जाती है। ऐसी कहानियां हम हिंदी फिल्मों में कई बार देख चुके हैं कि जहां प्यार के दुश्मन अमीरी-गरीबी होती है या फिर जात-पात। मलाल में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है। मलाल में दिखाया गया है कि चॉल में रहने वाले टपोरी और बदमाश लड़के शिवा को वहां रहने आई लड़की आस्था चौधरी से प्यार हो जाता है। लेकिन बीच में आता है उनका बैकग्राउंड। शिवा चॉल में रहता है वहीं आस्था अमीर परिवार से है। लेकिन शिवा का परिवार भी कभी अमीर हुआ करता था लेकिन आर्थिक नुकसान के चलते उसके परिवार की स्थिति खराब हो गई। शुरुआत में दोनों के बीच नोक-झोंक देखने को मिलती है लेकिन इसके बाद क्या दोनों एक दूसरे को अपनाते हैं? क्या दोनों में प्यार होता है? इन सवालों के जवाब फिल्मों में हैं।


फिल्म का रिव्यू

फिल्म में अहम भूमिका निभा रहे मिजान जाफरी और शर्मिन सहगल की परफॉर्मेंस शानदार है। फिल्म में दोनों के अभिनय को देखकर यह जरुर कहा जा सकता है कि बॉलीवुड को दो नए कलाकार मिल गए हैं जिनसे आगे और अच्छे काम की उम्मीद की जा सकती है। फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी रोचक है, जहां निर्देशक ने महाराष्ट्र में आनेवाले उत्तर भारतीयों के मुद्दे को भी छुआ है, मगर सेकंड हाफ में कहानी डल और स्लो हो जाती है। समीर धर्माधिकारी जैसे लोकल पॉलिटिशंस का किरदार फिल्म से गायब हो जाता है। क्लाइमैक्स निराश करता है और आखिर में फिल्म अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहती है। मीजान ने अपने डेब्यू में मराठी मुलगे को दिल से साकार किया है। वह ऐक्शन, इमोशन, डांस और रोमांस में अव्वल रहे हैं। शारमिन रोल के मुताबिक खूबसूरत और मासूम लगी हैं। मीजान और शारमिन के रूप में इंडस्ट्री को दो फ्रेश प्रतिभावान चेहरे मिले हैं।

फिल्म की सपॉर्टिंग कास्ट कहानी को मजबूती प्रदान करती है। फिल्म में संचित बल्हारा और अंकित अबलहारा का बैकग्राउंड म्यूजिक दमदार है। संगीतकार के रूप में संजय लीला भंसाली, श्रेयश पुराणिक और शैल हाडा के संगीत में ‘आइला रे’, ‘नाद खुला’ जैसे गाने अच्छे बन पड़े हैं।

फिल्म को क्यों देखें : अगर आप लव स्टोरी देखने के शौकीन हैं और नए सितारों की ऐंट्री देखना पसंद करते हैं, तो फिल्म में मीजान और शार्मिन की परफॉर्मेंस देखने जा सकते हैं।


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