Raja Mansingh Encounter Case: 35 साल बाद आया राजा मानसिंह हत्याकांड में फैसला, 11 पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा

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Raja Mansingh Encounter Case: 35 साल बाद आया राजा मानसिंह हत्याकांड में फैसला, 11 पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा

Raja Mansingh Encounter Case: राजस्थान के बहुचर्चित और भरतपुर रियासत के राजा मानसिंह हत्याकांड (Raja Mansingh Encounter Case)  में 35 साल बाद आज फैसला आया है। उत्तर प्रदेश की मथुरा जिला अदालत ने बुधवार को तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक समेत दोषी पाए गए 11 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। वहीं इस केस में आरोपी तीन अन्य लोगों को बरी कर दिया गया है। मामले में कुल 17 आरोपी थे जिनमें तीन की मौत हो चुकी है।

बता दें कि मंगलवार को जिला एवं सत्र न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने इस मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद पुलिस उपाधीक्षक कानसिंह भाटी सहित 11 आरोपियों को दोषी करार दिया गया था। चार्जशीट में आरोपी बनाए गए 18 पुलिसकर्मियों में से डीएसपी कानसिंह भाटी के चालक कॉन्स्टेबल महेंद्र सिंह को पूर्व में ही बरी किया जा चुका था तथा तीन अन्य आरोपी सिपाही नेकीराम, सीताराम व कुलदीप सिंह की मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही मृत्यु हो चुकी है।


इन्हें सुनाई गई उम्र कैद की सज़ा

कोर्ट ने डीएसपी कानसिंह भाटी, थानाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह, राजस्थान सशस्त्र बल के हेड कान्स्टेबल जीवन राम, हेड कॉन्स्टेबल भंवर सिंह, सिपाही हरी सिंह, शेर सिंह, छतर सिंह, पदमा राम, जगमोहन व डीग थाने के दूसरे अफसर इंस्पेक्टर रविशेखर मिश्रा और सिपाही सुखराम को उम्र कैद की सजा सुनाई है। पुलिस अधीक्षक कार्यालय में तैनात अपराध सहायक निरीक्षक कानसिंह सीरवी, हेड कॉन्स्टेबल हरिकिशन व सिपाही गोविंद प्रसाद को निर्दोष करार दिया है।

मुख्यमंत्री का मंच किया था ध्वस्त

जानकारी के अनुसार 21 फरवरी, 1985 को भरतपुर के राजा मान सिंह व दो अन्य की भरतपुर में हत्या हुई थी। दरअसल, राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरन माथुर अपने प्रत्याशी के समर्थन में डीग में चुनावी सभा को संबोधित करने आए थे। राजा मान सिंह डीग विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। कहा जाता है कि मंच से मुख्यमंत्री ने राजा के बारे में कुछ उल्टी-सीधी बातें कहीं। आरोप ये भी है कि कांग्रेस समर्थकों ने राजा मान सिंह के डीग स्थित किले पर लगा उनका झंडा उतारकर कांग्रेस का झंडा लगा दिया था।

उसी समय जब मानसिंह को यह पता चला तो वो अपने समर्थकों के साथ मुख्यमंत्री के सभास्थल पर पहुंच गए। उन्होंने अपनी जीप से टक्कर मारकर मंच और हेलीकॉप्टर को क्षतिग्रस्त कर दिया था। इसके बाद मुख्यमंत्री को सभा बीच में ही छोड़कर जाना पड़ा था।


तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक कानसिंह भाटी सहित डेढ़ दर्जन पुलिसकर्मियों ने राजा मानसिंह को घेर कर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी थीं। इस घटना में राजा मानसिंह एवं उनके दो अन्य साथी सुम्मेर सिंह और हरी सिंह की मौत हो गई थी। घटना के बाद तीनों के शव जोंगा जीप में पड़े मिले थे। राजा मानसिंह के साथ उस समय मौजूद उनके दामाद एवं उनकी पुत्री दीपा कौर के पति विजय सिंह सिरोही ने जैसे-तैसे अपनी जान बचाई थी।

35 साल बाद आया निचली अदालत का फैसला

राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह ने डीग (राजस्थान) थाने में इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। तत्कालीन सीओ कान सिंह भाटी व अन्य को नामजद किया गया था। पुलिस ने मुठभेड़ की रिपोर्ट दर्ज की। प्रारम्भिक तौर पर इस मामले की जांच भरतपुर पुलिस कर रही थी। बाद में राजा मानसिंह के परिवार की मांग पर इस केस की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई। केस का आरोप पत्र CBI ने जयपुर न्यायालय में दाखिल किया था। किंतु, मुकदमे की सुनवाई में आरोप के चलते यह मामला 1990 में मथुरा के जिला न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया गया। तब से मथुरा कोर्ट में ही मुकदमे की सुनवाई चल रही थी।


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