कर्नाटक: मुस्लिम युवक बनेगा लिंगायत मठ का मुख्य पुजारी, पिता ने दान में दी थी जमीन

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कर्नाटक: मुस्लिम युवक बनेगा लिंगायत मठ का मुख्य पुजारी, पिता ने दान में दी थी जमीन

उत्तरी कर्नाटक के गडग जिले में स्थित एक लिंगायत मठ ने एक मुस्लिम युवक को अपना मुख्य पुजारी बनाने का फैसला किया है। 33 साल के दीवान शरीफ रहिमनसाब मुल्ला की इस पद पर 26 फरवरी को तैनाती होगी। वह आसुति गांव के मुरुगराजेंद्र कोरानेश्वरा शांतिधाम मठ के मुख्य पुजारी बनेंगे। मुल्ला ने कहा कि वह बचपन से ही 12वीं सदी के सुधारक बासवान्ना से प्रभावित हैं और सामाजिक न्याय और सद्भाव के उनके आदर्शों की दिशा में काम करेंगे।

बता दें कि शरीफ शादीशुदा हैं और उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। लिंगायत मठों में गृहस्‍थ को पुजारी के तौर पर नियुक्‍त नहीं किया जाता है। लेकिन मुल्‍ला का मामला जुदा है।  शरीफ के पिता ने सालों पहले अपनी दो एकड़ जमीन मठ को दान में दी थी। यह मठ कलबुर्गी के खजूरी गांव में स्थित 350 साल पुराने कुरानेश्वर संस्थान के मठ से जुड़ा हुआ है। चित्रदुर्ग के श्री जगद्गुरु मुरुगराजेंद्र के 361 मठों में यह मठ शामिल है। जिसके देश के अन्य हिस्सों के अलावा कर्नाटक और महाराष्ट्र में लाखों अनुयायी हैं।


बता दें कि लिंगायत मठ धर्म को प्राथमिकता ना देते हुए सामाजिक सौहार्द को सर्वोपरि मानता है। खजूरी मठ के मुख्य पुजारी मुरुगराजेंद्र कोरानेश्वर शिवयोगी ने कहा, ‘बासवा का दर्शन सार्वभौमिक है और हम अनुयायियों को जाति और धर्म के भेदभाव के बिना गले लगाते हैं। उन्होंने 12वीं सदी में सामाजिक न्याय और सद्भाव का सपना देखा था और उनकी शिक्षा का पालन करते हुए हमने सभी के लिए मठ के दरवाजे खोल दिए हैं।’ आसुति में शिवयोगी के प्रवचनों से प्रभावित होकर शरीफ के मरहूम पिता रहीमनसाब मुल्ला मे गांव में अपनी दो एकड़ जमीन मठ को दान में दी थी।

शिवयोगी ने बताया कि आसुति मठ 2-3 सालों से काम कर रहा है और वहां पर निर्माण कार्य जारी है। मुख्य पुजारी ने कहा, ‘शरीफ बासवा के दर्शन के प्रति समर्पित है और तप करके अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनके पिता भी बहुत बड़े अनुयायी थे और उन्हेोंने हमसे लिंग दीक्षा ली थी। शरीफ ने 10 नवंबर, 2019 को हमसे दीक्षा ली। हमने उन्हें पिछले तीन वर्षों में लिंगायत धर्म और बासवन्ना की शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित किया है।’

शरीफ का कहना है कि वह बचपन से ही बासवा की शिक्षाओं के प्रति आकर्षित थे। उन्होंने कहा, ‘मैं पड़ोस के मेनासेंगी गांव में आटा चक्की चलाता था और खाली समय में बासवन्ना और 12वीं सदी के साधुओं द्वारा लिखे गए प्रवचनों को पढ़ा करता था। मुरुगराजेंद्र स्वामीजी ने मेरी इस छोटी सी सेवा को पहचाना और मुझे अपने साथ ले लिया। मैं बासवन्ना और अपने गुरु के रास्ते पर आगे बढ़ूंगा।’



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