एहसास-ए-ख़ुशी

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एहसास-ए-ख़ुशी

भूतकाल में था जिस प्रसंग का गम
अब सोचता हूं तो होती है
एहसास-ए-ख़ुशी।

कितना था नादान मैं
करता था गम भुलाने को वक्त बर्बाद
क्या पता था भविष्य में वो गम
देंगे
एहसास-ए-ख़ुशी ।


उस समय सोचता था तो
लगती थी जिंदगी बहुत भारी
अब सोचता हूँ तो
देते हैं वो गम-ए-अनुभव
मुस्कान प्यारी।

कंधे पर था जो वजन उस गम का
आज वही बना है
मजबूत स्तंभ मेरे व्यक्तित्व का,
अक्सर कड़वे होते हैं वो पल
किन्तु परिणाम उन पलों का
दे जाता है
एहसास-ए-ख़ुशी…!


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