प्रेरणा : कभी गैराज में काम किया करते थे, आज सालाना टर्न ओवर 400 करोड़ है!

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मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनो में जान होती है,

पंख से कुछ नहीं होता,  हौंसलों से ही उड़ान होती है।


इन पंक्तियों को सही साबित कर दिखाया है नागपुर के प्यारे खान ने। नागपुर के दीघोरी इलाके के स्लम में रहने वाले प्यारे खान जो कुछ सालों पहले ऑटो चलाया करते थे, आज करोड़ों के मालिक हैं। मात्र 12 हजार के लागत से अपना काम शुरू करने वाले प्यारे खान आज 400 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं। प्यारे खान कभी गैराज में काम किया करते थे, आज उनकी कंपनी के बेडे में करीब 125 ट्रकें शामिल हैं। ट्रांसपोर्ट-क्षेत्र में काम करने वाली देश की तीन बड़ी कंपनियां जो 65,000 टन सामग्री का परिवहन करती हैं, इनमें खान की कंपनी की भागीदारी 80 प्रतिशत है।

आपको जानकर हैरानी होगी की प्यारे खान का सफर बेहद तंगहाली से शुरू हुआ था। उन्होंने मामा की सहायता से ऑटो चलाना सीखा। 1994 में एक निजी कंपनी की आर्थिक सहायता से ऑटो खरीदा। अतिरिक्त आय के लिए आर्केस्ट्रा कंपनी में की-बोर्ड भी बजाते थे। यहीं से खुद का व्यवसाय आरंभ करने की प्रेरणा मिली। ऑटो बेचकर सेकंडहैंड बस खरीदी। आगे बढ़ने की इच्छा से 2004 में ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में हाथ आजमाने का इरादा किया। प्रतिस्पर्धा और झूठे प्रचार से कई बार उनके हौसलों को तोड़ने की कोशिश की गई लेकिन खान जिद पर डटे रहे। लोन पर ट्रक लेने के लिए कई बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से संपर्क किया लेकिन अनुभवहीनता और गारंटी नहीं होने से 8 बैंकों और संस्थानों ने इंकार कर दिया।

एक निजी बैंक के मैनेजर ने खान पर भरोसा किया। खुद की गारंटी पर 11 लाख रुपए का कर्ज दिलाया। बैंक की क़िस्त के रूप में प्यारे खान को प्रतिमाह 22,000 रुपए का भुगतान करना होता था लेकिन वे 50,000 रुपए 6 माह तक भुगतान करते रहे। हालांकि यहां भी उनकी किस्मत ने पलटी खाई। 6 माह बाद ट्रक दुर्घटनाग्रस्त हो गया । 80,000 रुपए खर्च कर ट्रक को सड़क पर वापस लाए। उस दौर में खराब रास्तों के चलते ज्यादा रकम मिलने के बाद भी कोई ट्रक चालक नागपुर से संभलपुर जोड़ा माइन नहीं जाना चाहता था। प्यारे खान ने इस रास्ते पर चलने का जोखिम उठाया और आगे दो नए ट्रक खरीदे। इसके बाद खान सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए।


शिक्षा का हौसला

प्यारे खान ने सामान्य ट्रकों की खरीद के बाद साल 2010 में लंबी छलांग लगाने के संकल्प के साथ शहर में पहली बार ढाई करोड़ की कीमत वाला 160 चक्कों वाला वाल्वो ट्रक खरीदा। इस ट्रक में भारी वजन की मशीनरी की आवाजाही की जाती है। इसके बाद खान ने नये व्यवसाय में हाथ आजमाने का निर्णय लिया। हिंदुस्तान पेट्रोलियम कंपनी का पेट्रोल पंप राष्ट्रीय महामार्ग पर शुरू करने का इरादा किया लेकिन लाइसेंस मिलने में शैक्षणिक योग्यता आड़े आ गई। रोटी-रोटी की जद्दोजहद में शिक्षा का समय ही नहीं मिल पाया था। दो बार असफलता हाथ लगी, आखिरकार तीसरे प्रयास में 10वीं उत्तीर्ण कर ली। इसके बाद, नोटबंदी की मंदी के बावजूद दिसंबर 2016 में विहिरगांव परिसर में दो एकड़ में जिले का सबसे बड़ा पेट्रोल पंप आरंभ किया है। इस पंप से प्रतिदिन 20,000 लीटर ईंधन की बिक्री से 6 लाख तक आमदनी हो रही है।

कार्यप्रणाली को मिली सराहना

गौरतलब है  कि करीब एक साल पहले आयकर विभाग ने भी प्यारे जिया खान की कंपनी को 100 प्रतिशत टीडीएस कटौती वाली कंपनी के रूप में मान्यता दी है। उनके हौसलों और नीतियों की कार्पोरेट घरानों ने भी सराहना की है। काम को हर हाल में बेहतरीन बनाने की उनकी जिद को देखते हुए उन्हें अवसर भी बड़े दिए गए। 7 सितंबर 2016 को सीमावर्ती इलाके में भूटान पावर कार्पोरेशन का थर्मल पावर प्लांट बनाने का काम आरंभ हुआ था। तीस्ता नदी के किनारे पर डोकलाम सीमा से जुड़े रास्ते में बोडो आतंकियों के साथ ही पड़ोसी देशों की सेना की गोलियों का खतरा भी बना हुआ था। अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े हेरिटेज द्वार के समीप से निर्माणकार्य की सामग्री को ट्रकों में लेकर जाने की समस्या खड़ी हो  गई। करीब 33 किमी तक सुरंग बनाकर सामग्री पहुंचाने का निर्णय लिया गया। इस काम की जिमीदारी खान ने ली। कड़ी मशक्कत और खतरे के बावजूद तड़के खुदाई और दिन भर रास्ते के बीच आने वाले पेड़ों की कटाई कर सामग्री पहुंचाई। उनकी क्षमता की सीमा सुरक्षा बल सहित भूटान प्रशासन द्वारा भी प्रशंसा की गई।

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