राहत इंदौरी का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर में 1 जनवरी, 1950 को हुआ था। उनका जन्म कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ था। राहत की प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एम.ए. किया।
इसके बाद 1985 में मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। राहत इंदौरी, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रह चुके थे। राहत साहब को हमेशा से शेरों शायरी का शौक था।
शादी की बात की जाए तो राहत इंदौरी उर्फ राहत कुरैशी ने दो शादियां की थीं। उन्होंने पहली शादी 27 मई, 1986 को सीमा राहत से की थी। सीमा से उनको एक बेटी शिबिल और 2 बेटे जिनका नाम फैज़ल और सतलज राहत हुए। उन्होंने दूसरी शादी अंजुम रहबर से साल 1988 में की। अंजुम से उनको एक पुत्र हुआ। आगे चल कर इन दोनों में तलाक हो गया।
राहत साहब ने इश्क़, खुद्दार और मिशन कश्मीर जैसी फिल्मों के लिए गाने भी लिखे हैं। राहत इंदौरी का निधन 11 अगस्त, 2020 को इंदौर में कोरोना के चलते हुआ था। आइए आपको राहत साहब के कुछ ऐसे शेर बताते हैं जिन्हें आज भी लोग सुनना पसंद करते हैं।
1.उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
2.न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
3.दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
4.शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
5.आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
6.रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
7.नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
8.बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
9.हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
10.घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
11.वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया
12.ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
13.मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
14.बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
15.मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
16.बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
17.अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
18.मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
19.एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
20.हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं