Mother Teresa Death Anniversary: मदर टेरेसा की पुण्यतिथि पर पढ़ें उनके 10 अनमोल विचार

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Read her 10 precious thoughts on Mother Teresa's death anniversary

Mother Teresa Death Anniversary : ममता और मानवता की मूर्ति, भारत रत्न मदर टेरेसा (Mother Teresa) की आज पुण्यतिथि है। नीले रंग के पाड़ की साड़ी, पूरी आस्तीन का ब्लाउज, गले में लटका क्रास चिह्न। चेहरे पर झुर्रियाँ, लगभग पाँच फुट लंबा कद, पैर में साधारण सी चप्पल पहने तथा कंधे पर दवाइयों का झोला टाँगे मदर टेरेसा (Mother Teresa) असाध्य बीमारियों से पीडि़त लोगों को दवाइयाँ देकर उनकी सेवा करती थीं।

भारतीय वेशभूषा में मदर टेरेसा के इस सरल व्यक्तित्व से प्रभावित होकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कभी कहा था- नम्रता और प्रेम की क्षमता का बहुत कुछ अनुभव तो मदर टेरेसा के दर्शन से ही हो जाता है। असाधारण व्यक्तित्व की धनी मदर टेरेसा (Mother Teresa)  का जन्म 26 अगस्त 1910 को मैकेडोनिया गणराज्य की राजधानी सोप्जे में एक कृषक दंपत्ति के घर हुआ था। मदर टेरेसा का असली नाम ‘अग्नेसे गोंकशे बोजशियु’ था।


बचपन में ही अगनेस ने अपने पिता को खो दिया। बाद में उनका लालन-पालन उनकी माता ने किया। महज 18 वर्ष की उम्र में ही मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने समाज सेवा को अपना ध्येय बनाते हुए मिस्टरस ऑफ लॉरेंटो मिशन से जुड़ गयीं। साल 1928 में मदर टेरेसा ने रोमन कैथोलिक नन के रूप में कार्य शुरू किया। दार्जिलिंग से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मदर टेरेसा कलकत्ता आ गईं। 24 मई 1931 को कलकत्ता में मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने ‘टेरेसा’ के रूप में अपनी एक पहचान बनाई।

इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली कोर वाली साड़ी अपनाने का फैसला किया। मदर टेरेसा ने कलकत्ता के लॉरेंटो कान्वेंट स्कूल में एक शिक्षक के रूप में बच्चों को पढ़ाने का काम भी किया। साल 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए ‘मिशनरिज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। जिसे 7 अक्टूबर 1950 में रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले।

मानवता के प्रति करुणा से ओतप्रोत मदर टेरेसा ने अपनी कर्मभूमि भारत को ही नहीं बल्कि सारी दुनिया की मानवता को अपने ममतामयी आंचल की छांव में समेट लिया। साल 1962 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। सेवा भावना की अनूठी मिसाल मदर टेरेसा ने 5 सितम्बर 1997 को दुनिया को अलविदा कह दिया।


मदर टेरेसा (Mother Teresa) के 10 अनमोल वचन-

–  मैं हर इंसान में ईश्वर देखती हूँ। जब मैं रोगियों के घाव साफ कर रही होती हूँ तो मुझे लगता है कि मैं खुद ईश्वर की ही सेवा कर रही हूँ। क्या यह एक सुंदर अनुभव नहीं है?

– यदि आप सौ लोगों को नहीं खिला सकते तो एक को ही खिलाइए।

– शांति की शुरुआत मुस्कराहट से होती है।

– जहां जाइए प्यार फैलाइए जो भी आपके पास आए वह और खुश होकर लौटे।

– यदि हमारे मन में शांति नहीं है तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके हैं कि हम एक दूसरे के हैं।

– सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ रोग या तपेदिक नहीं है ,बल्कि अवांछित होना ही सबसे बड़ी बीमारी है।

– चमत्कार यह नहीं की हम यह काम करते हैं बल्कि यह है कि ऐसा करने में हमें खुशी मिलती है।

– अकेलापन सबसे भयानक गरीबी है।

– प्यार की भूख को मिटाना रोगी के भूख को मिटाने से कहीं ज्यादा जरूरी है।

– यदि आप चाहते हैं कि आपका प्रेम संदेश सुना जाए तो उसे बार-बार कहें,जैसे दीये को जलाए रखने के लिए बार-बार उसमें तेल डालते रहना जरूरी है।

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