Hazari Prasad Dwivedi Birthday: हजारी प्रसाद द्विवेदी ऐसे आलोचक जिन्‍होंने अपनी कलम से दुनिया जीत ली

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भारत के साहित्यिक इतिहास के पन्ने जब भी पलटे जाएंगे तो कुछ ऐसे रचनाकार और निबंधकारों का नाम अक्सर सामने आएगा जिन्होंने अपनी रचनाओं के चलते साहित्य की नई पहचान दी। ऐसे ही एक निबंधकार है हजारी प्रसाद द्विवेदी, जिन्होंने अपने सकारात्मक लेखो और अपनी रचनाओं से समूचे भारत में अपनी एक अलग पहचान बनाई।

हजारी प्रसाद द्विवेदी बेहतरीन उपन्यासकार, कवि आलोचक और निबंधकार माने जाते रहे हैं, उनकी सांस्कृतिक दृष्टि जबरदस्त थी। उनका इस बात पर विशेष बल था कि भारतीय संस्‍कृति किसी एक जाति‍ की देन नहीं है, बल्कि अनेक जातियों के सहयोग से इसका विकास हुआ है। जिससे कई लोग सहमत नहीं थे लेकिन उनके धुर-विरोधी भी उनकी लेखनी के कायल थे।


द्विवेदी जी ने कबीर, रहीम सबको पढ़ा, कहीं सराहा, तो कहीं  आलोचना भी की। द्विवेदी जी मानते थे कि इंसान सिर्फ जीता-मरता नहीं, बल्कि एक एवोल्यूशन का हिस्सा है, जिसे वह ‘इंसान की जय यात्रा’ कहते थे, उन्होंने बदलते वक्त को बारीकी से देखा तो यह पाया कि दुनिया अपने स्वार्थ में जीती है।बस उतना ही याद रखती है, जितना उसका स्वार्थ है. यहां अच्छाई को जीते-जी पहचान नहीं मिलती।

हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के जाने माने उपन्यासकार कहलाए जाते है। वे हिंदी साहित्य के खड़ी बोली के बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रथम लेखकार माने जाते थे। हिन्दी के प्रसिद्ध निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्‍म 19 अगस्त 1907 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था।

इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था।बीस वर्षों तक शांति निकेतन में अध्यापन के बाद द्विवेदीजी ने जुलाई 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। 1957 में राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किए गए।


साल 1973 में ‘आलोक पर्व’ निबन्ध संग्रह के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने जीवनकाल में ढेरों रचनाएं को जन्म दिया। जिनमें सूर साहित्य, हिंदी साहित्य की भूमिका, मेघदूत, अशोक के फूल, कुटज, बाण भट्ट की आत्मकथा, चारु चंद्रलेख अनामदास का पोथा काफी प्रसिद्ध है।

कालिदास की लालित्य योजना, हिंदी साहित्य (उद्भव और विकास), हिंदी साहित्य का आदिकाल आदि उनकी श्रेष्ठ और अद्भुत साहित्यिक कृतियां हैं। द्विवेदी जी का 19 मई, 1979 को निधन हो गया। जब उनका निधन हुआ तब वह उत्तर प्रदेश में हिंदी अकादमी के अध्यक्ष थे।

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