डिजिटल इंडिया के दौर में कॉल करने के लिए चढ़ना पड़ता है पेड़ पर, जानें बिहार के इस गांव के बारे में

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डिजिटल इंडिया के दौर में कॉल करने के लिए चढ़ना पड़ता है पेड़ पर, जानें बिहार के इस गांव के बारे में

भारत अभी इंटरनेट क्रांति के दौर से गुजर रहा है। सरकारों द्वारा अक्सर डिजिटल भारत की बात होती रहती है। प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल भारत के सपने को साकार करने में केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक लगी हुई हैं। इन सबके बावजूद बिहार से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जिससे डिजिटलाइजेशन के मजबूत दावे की कमजोर कड़ी को सामने लाया है।

भारत आज भले ही इंटरनेट खपत के मामले में विश्वगुरु है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत का दूसरा पहलू कुछ और ही है। कैमूर के अधौरा प्रखंड में पहाड़ पर बसे एक ऐसे गांव से आपको रूबरू करवाते हैं जहां इस आधुनिक युग में भी मोबाइल काम नहीं करता है।


मोबाइल है पर नेटवर्क नहीं

जिला मुख्यालय भभुआ से 65 किमी दूर अधौरा प्रखंड के पहाड़ पर बसा है बड़वान कला गांव। गांव की कुल आबादी लगभग 5 हजार है। गांव अधौरा जाने वाली मुख्य सड़क से 22 किमी दूर पहाड़ पर बसा हुआ है। इस गांव के लोग की जिंदगी अब भी प्राचीन काल से कम नहीं है। न तो यहां कोई मोबाइल नेटवर्क है, न ही सड़क और न ही गांव की प्यास बुझाने के लिए पानी।

बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव


आज के इस डिजिटल युग मे यहां के लोग सड़क, पानी और भी कई मूलभूत सुविधाओं के आभाव में अपनी जिंदगी का गुजारा करते हैं। गांववालों ने किसी तरह मेहनत मजदूरी कर मोबाइल तो खरीद लिया, लेकिन उन्हें बात करने के लिए गांव से 2 किमी दूर पहाड़ियों पर लगे पेड़ पर चढ़कर मोबाइल नेटवर्क का इंतजार करना होता है। अगर किसी के फोन में नेटवर्क दिख जाए तो ऐसा लगता है जैसे उसकी भगवान से भेंट हो गई।

आज तक नहीं पहुची है एम्बुलेंस

21वीं शताब्दी के भारत के इस गांव की दास्तान ऐसी है कि आजादी के 70 साल बाद भी यहां आजतक एम्बुलेंस नहीं पहुंची। यदि कोई बीमार होता है तो गांव के लोग उसे बांस की लकड़ी में बांधकर अपने कंधे पर टांगकर 8 किमी पैदल पहाड़ियों से नीचे लाते हैं। फिर वहां से उन्हें जिला मुख्यालय भभुआ आने की गाड़ी मिलती है। गांव के लोगों ने बताया कि 100 में 90 लोग जिनकी तबियत बहुत ज्यादा खराब होती है जिला मुख्यालय पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। गांव में डॉक्टर की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।

डिजिटलाइजेशन पर सवाल

सोचकर हैरानी होती है कि आधुनिकता के जिस समय में लोग मोबाइल के बिना एक पल भी नहीं रह सकते वहां एक गांव में मोबाइल नेटवर्क न होना किस सोशल डेवेलपमेंट का अहसास कराता होगा। यह सरकार के डिजिटलाइजेशन के दावे पर भी गंभीर सवाल है।

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