कुछ स्पेशल रूटों पर ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी निजी कंपनियों को सौंपेगा रेलवे!

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केंद्र सरकार देश के कुछ रूटों पर पैसेंजर ट्रेनों के संचालन की जिम्मेदारी निजी कंपनियों को सौंपने पर गंभीरता से विचार कर रही है। रेलवे बोर्ड के एक दस्तावेज से पता चला है कि मोदी सरकार अगले 100 दिनों में कम भीड़भाड़ वाले और टूरिस्ट रूटों पर ट्रेन चलाने के लिए प्राइवेट कंपिनयों से बोलियां आमंत्रित करेगी।

पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर रेलवे अपने टूरिज्म और टिकटिंग इकाई आईआरसीटीसी को दो ट्रेनों के संचालन का जिम्मा सौंप सकता है। इसके तहत, टिकट से लेकर ट्रेनों के अंदर सेवाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी आईआरसीटीसी को दी जाएगी और बदले में रेलवे को एक निर्धारित रकम मिलेगी।


प्राप्त जानकरी के मुताबिक, ये ट्रेनें बड़े-बड़े शहरों को जोड़ते हुए स्वर्णिम चतुर्भुज मार्गों पर चलेंगी। साथ ही रेलवे रेकों की जिम्मेदारी भी आईआरसीटीसी को ही सौंप दी जाएगी। इसके बदले वह रेलवे की वित्तीय शाखा आईआरएफसी को सालाना लीज चार्ज दिया करेगी। उसके बाद रेलवे प्राइवेट प्लेयर्स यानि निजी कंपनियों को इच्छा जाहिर करने (एक्प्रेसन ऑफ इंट्रेस्ट) का अवसर देगी। इससे पता चल सकेगा कि कौन-कौन सी कंपनियां रात-दिन चलने वाली और प्रमुख शहरों को जोड़ने वाली पैसेंजर ट्रेनों के परिचालन का अधिकार हासिल करने के लिए आगे आ सकती है।

यह बात रेलवे बोर्ड के सभी सदस्यों और टॉप ऑफिसरों को मिले बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार यादव के संदेश में कही गई है। पत्र में कहा गया है कि रेलवे प्राइवेट कंपिनयों को न्योता देने से पहले ट्रेड यूनियनों से भी संपर्क करेगा।

टिकट पर सब्सिडी छोड़ने का अभियान चलेगा

बता दें कि रेलवे लोगों से टिकटों पर सब्सिडी छोड़ने के लिए व्यापक अभियान चलाने जा रहा है। टिकट खरीदते या बुक करते समय यात्रियों को सब्सिडी लेने या छोड़ने के विकल्प दिए जाएंगे। रेल टिकट पर सब्सिडी छोड़ने का अभियान उज्ज्वला योजना की तर्ज पर ही होगा। आपको याद दिला दें कि पीएम मोदी ने आर्थिक रूप से सक्षम लोगों से रसोई गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील की थी। सरकार का दावा है कि उसके प्रयासों का लाखों लोगों पर असर हुआ और उन्होंने एलपीजी सब्सिडी छोड़ दी। रेलवे के मुताबिक, उसे यात्री परिवहन कारोबार (पैसेंजर ट्रांसपोर्ट बिजनस) की लागत का सिर्फ 53% हिस्सा ही यात्री भाड़े से हासिल हो पाता है।


समितियों के सुझावों पर होगा अमल

गौरतलब है कि साल 2015 में अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय की अध्यक्षता वाली समिति ने रेलवे में कई अहम बदलावों की सिफारिश की थी। समिति की रिपोर्ट में ट्रेनों को संचालन में प्राइवेट कंपनियों को शामिल करने और रेलवे बजट खत्म करने के सुझाव दिए गए थे। इसस पहले राकेश मोहन की अध्यक्षता वाली एक समिति ने भी कुछ इसी तरह के सुझाव दिए थे, लेकिन इन सुझावों पर बहुत धीमी गति से कदम बढ़ाए गए। सरकार ने अलग से रेलवे बजट पेश करने की परंपरा तो खत्म कर दी, लेकिन प्राइवेट कंपनियों के हाथों ट्रेनों के संचालन का जिम्मा देने जैसे दूसरे प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिए गए थे। हालाँकि, अब सरकार धीरे-धीरे इस दिशा में कदम बढ़ाती हुई दिख रही है।


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