समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट: 12 साल बाद आएगा फैसला, 68 लोगों की गई थी जान

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समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट: 12 साल बाद आएगा फैसला, 68 लोगों की गई थी जान

बहुचर्चित समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में 12 साल बाद आज पंचकूला की एनआईए कोर्ट फैसला सुना सकती है। इस ब्लास्ट में 68 लोगों की जान चली गई थी और 19 कब्रों को आज तक पहचान का इंतजार है। मामले के आरोपियों में से एक की हत्या हो गई थी और तीन को पीओ घोषित कर दिया गया था।

20 फरवरी 2017 को SIT का गठन


20 फरवरी 2007 को इस मामले की जांच के लिए हरियाणा पुलिस की ओर से SIT का गठन किया गया था। प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर पुलिस ने दो संदिग्धों के स्केच जारी किए। ऐसा कहा गया कि ये दोनों ट्रेन में दिल्ली से सवार हुए थे और रास्ते में कहीं उतर गए। इसके बाद धमाका हुआ। पुलिस को घटनास्थल से दो ऐसे सूटकेस मिले, जो फट नहीं पाए थे। पुलिस ने संदिग्धों के बारे में जानकारी देने वालों को एक लाख रुपये का नकद इनाम देने की भी घोषणा की थी।

NIA ने की जांच

26 जुलाई 2010 को मामला NIA को सौंपा दिया गया। एनआईए ने 26 जून 2011 को पांच लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। पहली चार्जशीट में नाबा कुमार उर्फ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी, रामचंद्र कालसंग्रा, संदीप डांगे और लोकेश शर्मा का नाम था। आरोपियों पर आईपीसी की धारा 120 बी साजिश रचने के साथ 302 यानी हत्या, 307 हत्या की कोशिश करना और विस्फोटक पदार्थ, रेलवे को हुए नुकसान को लेकर कई धाराएं लगाई गई हैं।


जांच एजेंसी का कहना है कि ये सभी अक्षरधाम (गुजरात), रघुनाथ मंदिर (जम्मू), संकट मोचन (वाराणसी) मंदिरों में हुए आतंकवादी हमलों से दुखी थे और इसी का बदला बम से लेना चाहते थे। बाद में एनआईए ने पंचकूला की विशेष अदालत के सामने एक अतिरिक्त चार्जशीट दाखिल की थी। 24 फरवरी 2014 से इस मामले में सुनवाई जारी है।

असीमानंद को मिली थी जमानत

अगस्त 2014 में केस में आरोपी स्वामी असीमानंद को जमानत मिल गई। कोर्ट में जांच एजेंसी एनआईए असीमानंद के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाई थी। उन्हें सीबीआई ने 2010 में उत्तराखंड के हरिद्वार से गिरफ्तार किया था। उन पर वर्ष 2006 से 2008 के बीच भारत में कई जगहों पर हुए बम धमाकों को अंजाम देने से संबंधित होने का आरोप था। असीमानंद के खिलाफ मुकदमा उनके इकबालिया बयान के आधार पर बना था लेकिन बाद में वो ये कहते हुए अपने बयान से मुकर गए थे कि उन्होंने वो बयान टॉर्चर की वजह से दिया था।

18 फरवरी 2007 को हुआ था धमाका

18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत में दिल्ली से लाहौर जा रही समझौता एक्सप्रेस में धमाका हुआ था। चांदनी बाग थाने के अंतर्गत सिवाह गांव के दीवाना स्टेशन के नजदीक ब्लास्ट हुआ था। विस्फोट में 67 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि एक घायल की दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हुई थी। 23 लोगों के शवों की शिनाख्त नहीं हुई थी। सभी शवों को पानीपत के गांव महराना के कब्रिस्तान में दफना दिया गया था।

19 फरवरी 2007 को दर्ज कराई गई FIR के मुताबिक रात 11.53 बजे दिल्ली से करीब 80 किलोमीटर दूर पानीपत के दिवाना रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन में ब्लास्ट हुआ। धमाके के चलते ट्रेन की दो सामान्य बोगियों में आग लग गई थी। पुलिस ने विस्फोट स्थल से दो सूटकेस बम बरामद किए थे।

सूटकेस कवर से संदिग्धों तक पहुंची पुलिस
चश्मदीदों के बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने दो संदिग्धों के स्केच जारी किए थे। उनकी जानकारी देने पर एक लाख रुपये के इनाम का भी ऐलान हुआ था। हरियाणा सरकार ने बाद में मामले की जांच के लिए एक एसआईटी बनाई। धमाके के एक महीने बाद 15 मार्च 2007 को हरियाणा पुलिस ने इंदौर से दो संदिग्धों को अरेस्ट किया। सूटकेस कवर के जरिए पुलिस आरोपियों तक पहुंचने में कामयाब रही। जांच में सामने आया कि ये कवर इंदौर के एक बाजार से ब्लास्ट के कुछ दिन पहले खरीदे गए थे।

अभिनव भारत संगठन पर आरोप
जांच में हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह और मालेगांव ब्लास्ट का कथित लिंक भी सामने आया। हरियाणा पुलिस और महाराष्ट्र एटीएस की तफ्तीश में ‘अभिनव भारत’ नाम के संगठन का नाम भी आया। इसके बाद स्वामी असीमानंद को भी आरोपी बनाया गया। 26 जून 2011 को पांच आरोपियों के खिलाफ एनआईए कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई। पहले आरोप पत्र में असीमानंद के अलावा सुनील जोशी, रामचंद्र कालसांगरा, संदीप डांगे और लोकेश शर्मा का नाम भी शामिल था।

 

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