लोकसभा में एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने बैंक में जमा अनक्लेम्ड डिपॉजिट्स को लेकर कई अहम बातें बताई हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि बैंकों और बीमा कंपनियों में बिना दावे वाली रकम (अनक्लेम्ड डिपॉजिट) 32,455 करोड़ रुपये हो गई है। बैंकों में अनक्लेम्ड डिपॉजिट में पिछले साल 26.8% इजाफा हुआ। यह राशि 14,578 करोड़ रुपये पहुंच गई। इसीलिए आज हम आपको बैंक से जुड़ा एक खास नियम बताने जा रहे हैं। आपको बता दें कि
गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि बैंकों में अनक्लेम्ड डिपॉजिट्स को देखते हुए 2014 में आरबीआई ने डिपॉजिटर एजुकेशन एंड अवेयरनेस फंड (डीईएएफ) स्कीम शुरू की है। वित्त मंत्री ने बताया कि डीईएएफ में ट्रांसफर राशि पर पहले 4 फीसदी ब्याज दिया जाता था। एक जुलाई 2018 से इसे 3.5% कर दिया गया। डीईएएफ की राशि का उपयोग जमाकर्ताओं के हितों को बढ़ावा देने और ऐसे ही दूसरे उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
इसके तहत 10 साल या ज्यादा समय से निष्क्रिय पड़े सभी अनक्लेम्ड खातों में जमा राशि या वह रकम जिस पर 10 साल से किसी ने दावा नहीं किया है उसकी ब्याज के साथ गणना कर डीईएएफ में डाल दी जाती है।
अगर कोई ग्राहक निकालना चाहें तो-कोई ग्राहक कभी दावा करता है तो बैंक ब्याज के साथ उसे भुगतान कर देते हैं। ऐसे में बैंक डीईएएफ से रिफंड का दावा करते हैं।
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क्या कहता है कानून?
बता दें कि, बैंकों में पड़े अनक्लेम्ड डिपॉजिट की बात है तो बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 में हुए संशोधन और इसी एक्ट के सेक्शन 26ए के इन्सर्शन के अनुरूप आरबीआई ने डिपॉजिटर एजुकेशन एंड अवेयरनेस फंड (DEAF) स्कीम 2014 को बनाया है।
इस स्कीम के तहत बैंक 10 साल या उससे ज्यादा समय से ऑपरेट नहीं किए गए सभी अकाउंट में मौजूद क्यूमुलेटिव बैलेंस को उसके ब्याज के साथ कैलकुलेट करते हैं और उस अमाउंट को DEAF में ट्रांसफर कर देते हैं। अगर DEAF में ट्रांसफर हो चुके अनक्लेम्ड डिपॉजिट का कस्टमर आ जाता है तो बैंक ब्याज के साथ कस्टमर को भुगतान कर देते हैं और DEAF से रिफंड के लिए दावा करते हैं। DEAF का इस्तेमाल डिपॉजिट के इंट्रेस्ट के प्रमोशन और इससे जुड़े अन्य आवश्यक उद्देश्यों के लिए होता है, जो कि आरबीआई सुझा सकता है।