शब-ए-बरात (Shab-E-Barat) मुस्लिम धर्म में एक अहम रात माना जाती है। मुख्यता इस रात सभी मुसलमान ज्यादा से ज्यादा दान और अल्लाह की इबादत करते हैं। साथ ही अपने गुनाहों और गलती के लिए भी अल्लाह से माफी मांगते हैं। दरअसल शब-ए-बरात का मतलब ही गुनाहों से माफी मांगने वाली रात। शब- मतलब रात और बरात का मतलब बरी या आजाद। इस्लामिक कैलेण्डर के 8वें महीने शाबान में शब-ए-बरात आती है। हालांकि इस रात को किसी अन्य त्यौहारों की तरह नहीं मनाया जाता है। इस रात मुस्लिम लोग सिर्फ नमाज, कुरान शरीफ, दान-पुण्य और अल्लाह की इबादत करते हैं। इस बार शब-ए-बरात जुमेरात (गुरुवार) 9 अप्रैल की है।
मुलिस्म लोग इस रात ज्यादा से ज्यादा दान और इबादत करते हैं
शब-ए-बरात इबादत, तिलावत (कुरान शरीफ पढ़ना) और सखावत (दान-पुण्य) की रात होती है। इसके अलावा मुस्लिम लोग मस्जिदों में पूरी रात इबादत करते हैं और कब्रिस्तानों में जाकर इंतकाल (मृत) हो चुके अपने बढ़े-बूढ़ो के लिए अल्लाह से दुआ करते हैं। इसलिए इस रात खासतौर पर कई मुसलमान कब्रिस्तानों में जाते हैं।
अल्लाह शब-ए-बरात (Shab-E-Barat) वाली रात पिछले साल और आने साल के कामों का लेखा-जोखा तैयार करते हैं।
शब-ए-बरात वाली रात अल्लाह पिछले साल किए गए कामों का और आने वाले साल का लेखा-जोखा तैयार करते हैं। इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है। नमाज, तिलावत-ए-कुरआन, और हैसियत के मुताबिक खैरात करना इस रात के अहम काम हैं।
कब्रिस्तान जाकर मुस्लिम लोग अल्लाह से इंतकाल हो चुके लोगों की मगफिरत की दुआएं मांगते हैं।
इस्लामी मान्यता के मुताबिक शब-ए-बरात की सारी रात इबादत और तिलावत की जाती है। साथ ही इस रात मुस्लिम अपने उन परिजनों, जो दुनिया से रूखसत (इंतकाल) हो चुके हैं, अल्लाह से उनकी मगफिरत (मोक्ष) की दुआएं करने के लिए कब्रिस्तान भी जाते हैं। इस रात दान देने का खास महत्व बताया गया है।