Bakr-Id 2019: इस साल बकरीद 12 अगस्त, 2019 को पूरे देश में मनाई जाएगी। बकरीद (Bakr-Id) को ईद-उल-अजहा (Eid-ul-Azha) या ईद-उल-जुहा (Id-ul-Zuha) भी कहा जाता है। रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद बकरीद आती है। बकरीद का त्योहार मुख्य रूप से कुर्बानी के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
ईद-उल-फितर (मीठी ईद) के बाद इस्लाम धर्म का यह दूसरा प्रमुख त्यौहार है। इसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। इस मौके पर जानवरों की कुर्बानी तीन दिनों तक चलती है। यानी ईद-उल-जुहा के मौके पर अब 12 से लेकर 14 अगस्त सूर्यास्त से पहले तक कुर्बानी दी जाएगी।
परंपरा की शुरुआत
मान्यता है कि बकरीद (Bakr-Id) का त्योहार पैगंबर हजरत इब्राहिम (Ibrahim) द्वारा शुरु हुआ था। इन्हें अल्लाह का पैगंबर माना जाता है। इब्राहिम जिंदगी भर दुनिया की भलाई के कार्यों में लगे रहे। उन्होंने लोगों की काफी सेवा की। लेकिन 90 साल की उम्र तक उन्हें कोई संतान नहीं हुई थी। तब उन्होंने खुदा की इबादत की जिससे उन्हें एक खूबसूरत बेटा इस्माइल मिला।
एक दिन सपने में दिखे खुदा ने उनकी परीक्षा लेने की सोची और और उन्हें अपनी प्रिय चीज की कुर्बानी देने का आदेश दिया। अल्लाह के आदेश को मानते हुए उन्होंने अपने सभी प्रिय जानवर कुर्बान कर दिए। एक दिन हजरत इब्राहिम को फिर से यह सपना आया तब उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान करने का प्रण लिया, क्योंकि वो उनका सबसे प्रिय था। बेटे की कुर्बान देते समय उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी, जिससे की उन्हें दया ना आ जाए। जब उनकी आंखें खुली तो उन्होंने पाया कि उनका बेटा तो जीवित है और खेल रहा है। बल्कि उसकी जगह वहां एक बकरे की कुर्बानी खुद ही हो गई है। और इस तरह अल्लाह ने यह मान लिया कि इब्राहिम उनके लिए अपनी प्रिय चीज भी कुर्बान कर सकते हैं। कहा जाता है कि बस तभी से बकरे की कुर्बानी की प्रथा चली आ रही है।
ऐसे मनाई जाती है बकरीद
बकरीद पर अपने प्रिय बकरे की कुर्बानी दी जाती है। बकरीद से कुछ दिन पहले बकरा खरीदकर लाना होता है, जिससे आप उसकी सेवा कर सकें और बकरे से आपका लगाव हो जाए। बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग इद-उल-अजहा की नमाज सुबह में अदा करते हैं। इसके बाद बकरे की कुर्बानी देने का कार्य शुरु किया जाता है।
मीट को तीन हिस्सों में बांटकर दान करना
कुर्बानी के बाद बकरे के मीट को लेकर भी नियम है। मीट को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। मीट के इन तीन भागों में एक हिस्सा गरीबों के लिए, दूसरा भाग रिश्तदारों और दोस्तों के लिए और तीसरा भाग अपने लिए रखा जाता है। इसके पीछे यह तर्क है कि खुदा के आदेश पर आप अपनी प्रिय चीज को भी बांट सकते हैं।