Narasimha Jayanti 2019: 17 मई को मनाई जाएगी नरसिंह जयंती, जानिए इसके पीछे की पूरी कथा

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Narasimha Jayanti 2019: 17 मई को मनाई जाएगी नरसिंह जयंती, जानिए इसके पीछे की पूरी कथा

हिन्दू मान्यता में नरसिंह जयंती का बहुत महत्त्व है। कहा जाता है इस दिन भगवान विष्णु आधा नर और आधा शेर अवतार में प्रकट हुए थे, जिसे नरसिंह कहा गया। इस बार नरसिंह जयंती 17 मई को मनाई जाएगी।

हिन्दू धर्म के अनुसार नरसिंह जयंती वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस दिन को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर राजा हिरण्यकश्यप का अंहकार और वरदान को तोड़ा था। इस साल नरसिंह जयंती 17 मनाई जाएगी। जानिए इससे जुड़े महत्त्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि आदि के बारे में।


नरसिंह जयंती का महत्व

कहा जाता है कि भगवान नरसिंह की जयंती पर उनकी पूजा- अर्चना करने और व्रत रखने से सभी दुख दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि भगवान नरसिंह वैसे ही अपने भक्तों की रक्षा करते हैं, जैसे उन्होंने अपने भक्त प्रहलाद की हमेशा रक्षा की। इसके साथ ही कहा जाता है कि भगवान नरसिंह के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं।

शुभ मुहूर्त

इस साल नरसिंह जयंती का पूजा का मुहूर्त केवल 2 घंटे 37 मिनट का होगा जो शाम के 4:20 से 6:58 तक रहेगा।

पूजा विधि

नरसिंह जयंती के इस अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पूजा का मुहूर्त शाम को होता है। इस दिन पूजा के लिए मंदिर के पास नरसिंह के साथ माता लक्ष्मी की भी मूर्ति या तस्वीर रखनी चाहिए। साथ ही पूजा में मौसम के फल, फूल, चंदन, कपूर, रोली, धूप, कुमकुम, केसर, पंचमेवा, नारियल, अक्षत, गंगाजल, काले तिल और पीताम्बर का उपयोग करना चाहिए।


पूजा के लिए चंदन, कपूर, रोली और धूप दिखाने के बाद भगवान नरसिंह की कथा सुनें और मन्त्रों का जाप करें इसके साथ ही नरसिंह जयंती के इस अवसर पर गरीबों को तिल, कपड़ा आदि दान करना चाहिए

मंत्र

नरसिंह जयंती के दिन इस मंत्र का जाप करना चाहिए, ‘नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्। ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु।’

नरसिंह जयंती की कथा

हिन्दू मान्यता के अनुसार कश्यप नाम का एक राजा था, जिसके दो पुत्र थे। उनका नाम हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप था। कहा जाता है कि एक बार हिरण्याक्ष धरती को पाताल लोक में ले गया। इससे क्रोध में आए विष्णु जी ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया और धरती को वापस शेषनाग की पीठ पर स्थापित कर दिया। इससे नाराज होकर हिरण्यकश्यप भाई की मृत्यु का बदला लेने का निर्णय किया। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की जिसके बदले उसने वरदान मांगा कि उसे कोई न मार पाए न कोई इंसान और न ही कोई पशु, ना घर के भीतर और ना बाहर, ना धरती पर और ना ही आकाश में, ना किसी अस्त्र से और किसी शस्त्र से। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान प्राप्त कर हिरण्यकश्यप को अहंकार हो गया और वह लोगों को कष्ट देने लगा।

वहीँ हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। उसने प्रहलाद को विष्णु की भक्ति करने से रोका और बहन होलिका की मदद से मारने की कोशिश भी की। एक दिन जब प्रहलाद ने अपने पिता से कहा कि भगवान विष्णु हर जगह मौजूद हैं, तो हिरण्यकश्यप ने उसे चुनौती देते हुए कहा कि अगर तुम्हारे भगवान सर्वत्र हैं, तो इस स्तंभ में वो क्यों नहीं दिखते? ये कहने के बाद उसने उस स्तंभ पर प्रहार किया। तभी स्तंभ में से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए। यह आधा मानव आधा शेर का रूप था।

भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार ने हिरण्यकश्यप को अपनी जांघों पर लिटाकर उसके सीने को नाखूनों से फाड़ दिया। हिरण्यकश्यप के वध का स्थान न तो घर के अदंर था और न ही बाहर, उस समय न दिन था न रात और भगवान विष्णु भी न पूर्ण रूप से इंसान थे न ही पशु। उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी जांघों पर मारा, जो न धरती पर था न ही आकाश में और उन्होंने शस्त्र-अस्त्र की बजाए नाखूनों से मारा।

इसी दिन से नरसिंह जयंती मनाई जाने लगी।

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