इस्लाम धर्म में सभी की जरूरतों को पूरा करने का तरीका दिया गया है। गरीबों की बात करें तो उनके कल्याण के लिए भी इस्लाम में कुछ खास नियम हैं। ये नियम अमीर लोगों की आमदनी के एक हिस्से पर गरीब, यतीम और समाज के सबसे निचले तबके को हक देते हैं। इसका मतलन है अमीरों को अपनी कमाई का एक नियमित हिस्सा दान करना होता है, जिससे समाज के गरीब लोगों की ज़रूरतें पूरी हो सकें।जकात, सदका और फितरा इसी का हिस्सा हैं।
क्या होती है जकात?
इस्लाम मान्यता के अनुसार इस्लाम के पांच स्तम्भों (फर्ज) में से एक ‘जकात’ है, जिसका मकसद समाज में आर्थिक बराबरी लाना है। साथ ही समाज के गरीब लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना है।
जकात का शाब्दिक अर्थ पाक या शुद्ध करना होता है। इस्लाम में अपनी कमाई का एक हिस्सा समाज के सबसे गरीब तबके को देने का नियम है। इस्लाम धर्म में जकात देना जरूरी होता है कहा गया है, जो मजबूर और गरीब हैं उन्हें दान दो और साथ ही उन लोगों की कर्ज चुकाने में मदद करो जो अपनी सिमित आमदनी में कर्ज नहीं चूका सकते।
जकात की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि कुरआन में 32 जगहों पर नमाज के साथ जकात का जिक्र भी आया है।
कितना देना होता जकात?
इस्लाम मान्यता के अनुसार यह जकात ‘साहिब-ए-निसाब’ पर फर्ज होता है। इस्लाम में बताया गया है कि साहिब-ए-निसाब वो औरत या मर्द होता है, जिसके पास साढ़े सात तोला सोना (75 ग्राम सोना) या 52 तोला चांदी हो या फिर जिसकी हलाल कमाई में से सालाना बचत 75 ग्राम सोने की कीमत के बराबर हो। उस इंसान को अपनी कुल बचत का 2.5 फीसदी जकात के तौर पर गरीब लोगों को देना होता है।
उदहारण के लिए अगर आपकी एक साल की बचत 1 लाख है तो आपको इसका 2.5 प्रतिशत यानी 2500 रुपए जकात के तौर पर देने होंगे।
फितरा क्या होता है?
इस्लाम मान्यता के अनुसार फितरा भी एक प्रकार का दान होता है, जो रमजान के महीने में ईद से पहले दिया जाता है। इस दान में गरीबों को पैसा या अनाज देना होता हैउद्देश्य इसे देने का मुख्य उद्देश्य है कि ईद के दिन कोई भीख ना मांगे। इसमें गेंहू, किशमिश, जौ दिए जा सकते हैं, लेकिन आजकल पैसो की ज्यादा मांग के चलते एक इंसान को दो किलो गेहूं की कीमत के बराबर पैसे देने होते हैं। भारत में इस साल फितरे की रकम एक शख्स पर 40 रुपये तय हुई है।
दान का एक और तरीका है सदका
वैसे तो इस्लाम में किसी भी इंसान द्वारा किसी दूसरे के लिए किए जाने वाले काम को सदका कहते हैं। इसे एक दान के तौर पर भी देखा जाता है। सदके की कोई नियमित सीमा नहीं है। सदके के तौर पर किसी को दस रुपये भी दे सकते हैं और चाहें तो दस करोड़ भी दान कर सकते हैं। यह रमजान के महीने में ही देना जरूरी नहीं होता है। सदका पूरे साल जब चाहे दिया जा सकता है।