कोर्ट में ‘नाजायज़’ शब्द का इस्तेमाल बंद करवाना चाहते थे रोहित शेखर, मृत्यु के साथ समाप्त हुए संघर्ष

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कोर्ट में 'नाजायज़' शब्द का इस्तेमाल बंद करवाना चाहते थे रोहित शेखर, मृत्यु के साथ समाप्त हुए संघर्ष

यूपी और उत्तराखंड के पूर्व सीएम एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर तिवारी की मंगलवार 16 अप्रैल को हत्या कर दी गई। हत्या के आरोप में उनकी पत्नी अपूर्वा तिवारी को गिरफ्तार कर लिया गया है, जिन्होंने शादी से खुश न होने पर गला घोटकर रोहित की हत्या कर दी। अपूर्वा शुक्ला के साथ रोहित का विवाह 11 मई 2018 को हुआ था।

16 अप्रैल को रोहित शेखर तिवारी की तबीयत खराब होने पर साकेत स्थित मैक्स अस्पताल ले जाया गया था जहां डॉक्टरों ने रोहित को मृत घोषित कर दिया था।


एनडी तिवारी के बेटे रोहित तिवारी ने वर्ष 2008 में एनडी तिवारी को अपना जैविक पिता बताते हुए कोर्ट में मुकदमा कर दिया था। कोर्ट ने रोहित को एनडी तिवारी का बेटा मानते हुए उन्हें संपत्ति का वारिस घोषित किया था।

जानिए ये था पूरा मामला

वर्ष 2008 में जब रोहित तिवारी ने एनडी तिवारी के बेटे होने का दावा किया। तब कोर्ट ने एनडी तिवारी के डीएनए (DNA) सैंपल की जांच के आदेश दिए थे। लेकिन एनडी तिवारी ने सैंपल देने से इंकार कर दिया था। बाद में कोर्ट ने रोहित के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें एनडी तिवारी का बेटा घोषित किया था।

पिता के नाम के लिए लड़ी लम्बी कानूनी लड़ाई

पिता का नाम पाने के लिए रोहित ने कानून का सहारा लिया। उन्हें इसके लिए काफी लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी। इस मामले को खारिज करने के लिए एनडी तिवारी की ओर से अपील भी की गई थी। कोर्ट में लंबी सुनवाई के बाद डीएनए जांच कराने के आदेश दिए गए थे । अंत में डीएनए जांच की बदौलत रोहित को एनडी तिवारी के बेटे के रूप में कोर्ट से मान्यता मिली थी। जांच में रोहित का जैविक पिता साबित होने के बाद एनडी तिवारी ने भी उन्हें अपने बेटे के तौर पर अपना लिया था।


बता दें कि रोहित शेखर की मां उज्‍जवला से एनडी तिवारी के प्रेम संबंध रहे, मगर उन्होंने शादी नहीं की थी। 3 मार्च 2014 को रोहित शेखर को बेटा स्‍वीकार किया। इसके बाद एनडी तिवारी ने रोहित शेखर की मां उज्‍जवला से 88 साल की उम्र में शादी की थी। शादी का समारोह 14 मई 2014 को लखनऊ में संपन्न हुआ। पिछले वर्ष 18 अक्टूबर को एनडी तिवारी का निधन हो गया था।

ये बदलाव लाना चाहते थे रोहित शेखर

रोहित एक बड़े बदलाव के लिए जंग लड़ना चाहते थे। वह अदालतों में कुछ शब्दों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगवाने के लिए काम कर रहे थे। उनका कहना था कि “कोई भी बच्चा नाजायज़ नहीं हो सकता, सिर्फ़ पिता ही नाजायज़ हो सकता है।” वह एक याचिका दायर करने की तैयारी में थे ताकि कोर्ट में वकील और जज बच्चों को नाजायज़’ कहना बंद करें।

इसके साथ वह औरतों के लिए भी काम करना चाहते थे। उन्हें ‘रखैल’ और ‘व्यभिचारी’ जैसे शब्दों पर भी ऐतराज़ था। उनका कहना था “भारत अब भी एक सामंती समाज है और ये महिलाओं और बच्चों के प्रति बहुत निर्मम है। मैं इसे बदलना चाहता हूं।”

लेकिन रोहित शेखर के दुखद निधन के साथ उनके ये सभी संघर्ष भी समाप्त हो गए।

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