शब-ए-क़दर 2019: कब है लैलात अल-क़द्र? जानिए इस रात की अहमियत और मायने

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इस्लामिक धर्म के अनुसार ‘शब-ए-क़दर’ वह रात है, जब पैगंबर मोहम्मद को ‘कुरआन-ए- शरीफ’ की पहली आयतें बताई गई थी। इसे ‘लैलात अल-क़द्र’ भी कहा जाता है और यह रमजान के महीने में आती है। मुस्लिम समाज के लोग मानते हैं कि इस रात अल्लाह अपने बंदो को माफी देता है और दुआएं क़ुबूल करता है। साथ ही जमीन पर उतारे गए फरिश्तों को भी साल भर का फरमान भी इसी दिन बताया जाता है।

इस्लाम की पाक किताब ‘कुरआन-ए- शरीफ’ में लैलात अल-क़द्र की तारीख नहीं बताई गई है, लेकिन इस रात की अहमियत के बारे में जरूर बताया गया है। कुरआन-ए- शरीफ में एक पूरी सूरत (अध्याय) लैलात अल-क़द्र के बारे में है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार, इस रात में की गई इबादत का इनाम 83 सालों में की गई इबादत से भी ज्यादा होता है।


शब-ए-क़दर 2019: कब है लैलात अल-क़द्र?

शब-ए-क़दर की तारीख तय नहीं है। यह रमजान के पाक महीने के आखिरी 10 दिनों में से एक विषम रात पर होती है, जिसका मतलब है कि यह 21वीं, 23वीं, 25 वीं, 27वीं या 29वीं रात को होती है। इस हिसाब से, भारत में लैलात अल-क़द्र 30 मई या 1 जून या 3 जून की रात हो सकती है।

शब-ए-क़दर की अहमियत और मायने


इस्लाम धर्म में लैलात अल-क़द्र काफी अहम होती है, क्योंकि इस रात को पैगंबर मोहम्मद को कुरान का पता चला था। मुस्लिम समाज में माना जाता है कि इस रात अल्लाह अपने बंदों पर बेहद मेहरबान होता है। इस रात को मुस्लिम समाज के लोग अल्लाह की इबादत के लिए नमाज़ पढ़ते हैं और कुरआन- ए- शरीफ की तिलावत करते हैं। साथ ही माना जाता है कि इस रात इंसानों के लिए आखिरी मार्गदर्शन आता है।

शब-ए-क़दर के संकेत:

किसी को नहीं पता कि रमजान में शब-ए-क़दर किस दिन आती है। कुछ हदीसों में इस रात की कुछ निशानियां बताई गई हैं, जो इस रात का संकेत देती हैं। शब-ए-क़दर के लिए कहा जाता है कि यह एक शांत और चमकदार रात है। इस रात तापमान न तो गर्म होता है और न ही ठंडा। साथ ही चांद साफ चमकता है। इस रात के दौरान भी बारिश हो सकती है।

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