UP: लॉकडाउन में घर लौटे दलित की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत, परिजनों ने पुलिस पर लगाया केस को रफा-दफा करने का आरोप

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Angad's suicide of Dalit person a result of conspiracy

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में एक दलित व्यक्ति की मौत का मामला सामने आया है, जिसमें पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। आजमगढ़ जिले के धड़नी ताजनपुर गांव में पिछले दिनों दिल्ली से लौटे अंगद राम नामक एक शख्स का शव पेड़ से लटका मिला। एक ओर जहां परिजन इसे हत्या का मामला बता रहे हैं, वहीं पुलिस प्रशासन इस मामले को आत्महत्या बताकर निपटाने में लगा है। उन्होंने पुलिस पर मामले की लीपापोती का आरोप लगाया है।

दरअसल, अंगद राम की पेड़ पर टंगे शव की फोटो को लेकर बहुत से सवाल हैं जो जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। क्योंकि इंसान तो झूठ बोल सकता है, लेकिन मौके की परिस्थितियां नहीं। मृतक के परिजनों के मुताबिक, पहली नजर में ही लग जाता है कि उन्हें मारकर पेड़ पर लटकाया गया है। उनका कहना है कि फोटो में साफ देखा जा सकता है कि मृतक अंगद राम के पैरों में चप्पल उसी तरह से पड़ी है, जैसे वह पहले थी। अगर कोई व्यक्ति अगर फांसी लगाएगा तो छटपटाएगा और ऐसे में चप्पल उसके पैर में पहले की तरह नहीं टिक सकती।


इसके अलावा पेड़ पर चढ़ने के गीली मिट्टी के जो निशान हैं वो पैरों के बताए जा रहे हैं। ऐसे में यह कैसे हो सकता है क्योंकि उसके पैरों में चप्पल मौजूद थी। क्या ऐसा हुआ होगा कि वो चप्पल निकालकर पेड़ पर चढ़ा होगा और फिर फांसी लगाते वक्त चप्पल पहन ली होगी। अगंद राम का शव नींबू के पेड़ पर लटका हुआ मिला। इस पेड़ पर चढ़ना और फिर उस पर से फांसी लगाना संभव प्रतीत नहीं होता।

जब हमने इस बारे में अंगद की पत्नी रवीना से बात की तो उन्होंने रोते हुए बताया कि उनके पति दिल्ली के जीटीबी अस्पताल की कैंटीन में नौकरी करते थे। वे यहां ताहिरपुर गांव में रहते थे। लेकिन कमरे का किराया काफी ज्यादा था तो वे गाजियाबाद के भोपरा में रहने लगे। अंगद यहीं से रोज नौकरी पर जाने लगे। लेकिन अचानक लॉक डाउन में उनका काम बंद हो गया था। इसी दौरान रवीना ने 10 अप्रैल को एक मृत बच्चे को जन्म दिया और परिवार पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। उनके पास अब न खाने की कोई व्यवस्था थी न ही इलाज पर खर्च करने के लिए पैसे।

इसलिए कुछ दिन पहले ही रवीना और उनके पति दिल्ली से ट्रेन पकड़कर आजमगढ़ वापस अपने घर लौट आए थे। रवीना अपने पति की आत्महत्या की पूरी कहानी को नकारते हुए कहती हैं कि ये साजिश के तहत की गई हत्या है। रवीना ने बताया कि उनके पति राजेसुल्तानपुर अपने मौसी के घर गए हुए थे और 5 जून की शाम 6 बजे के करीब घर से लौटकर आए। लेकिन उन्होंने चाय तक नहीं पी और कहा कि प्रधान जी बुला रहे हैं, मैं मिलकर आता हूं, उसके बाद अंगद का शव पेड़ पर लटका हुआ मिला।


जब अंगद वापस लौटकर नहीं आए तो घरवालों ने छानबीन शुरू की। रात आठ बजे के करीब उनकी माता विमलौता पता करने प्रधान के घर गईं तो प्रधान घर पर मौजूद नहीं थे। अगले दिन 6 जून की सुबह घर के लोग खेते में काम कर रहे थे कि सुबह के तकरीबन नौ बजे गांव के एक लड़के ने आकर सूचना दी कि अंगद की लाश नीबू के पेड़ पर लटक रही है।

जिसके बाद पूरा परिवार दौड़ते हुए वहां पहुंचा तो पहले से मौजूद प्रधान ने उन्हें घटना स्थल तक जाने नहीं दिया। उनकी मां विमलौता बताती हैं पुलिस से उन्होंने कहा कि आप लोग हमसे क्यों नहीं मिलने दे रहे हैं। अंगद की मां ने पुलिस से मिन्नत करते हुए कहा कि उनका बड़ा बेटा राजेश आजमगढ़ शहर में काम करता है, उसको तो आ जाने दीजिए। लेकिन पुलिस नहीं मानी और उसकी लाश को लेकर आजमगढ़ चली गई।

अंगद की मां बताती हैं कि उनके बेटे-बहू दिल्ली से आए तो वे खुश थे। इस महामारी में हर आदमी अपने परिवार में रहना चाहता है। मीडिया में आई बातों को परिजनों ने प्रधान की मनगढ़ंत कहानी बताया। उनकी मां बताती हैं कि उनके पड़ोसी से जमीन विवाद के चलते कई बार उन्होंने मेरे बेटों को जान से मारने की धमकी दी थी। वो प्रधान के रवैए पर भी सवाल उठाती हैं और कहती हैं कि मेरे बेटे की जहर खाने की झूठी बात प्रधान ने फैलाई।

मृतक की मां ने कहा, “सुबह लाश की खबर मिलने के बाद जब वे गए तो प्रधान घटना स्थल पर मौजूद थे। प्रधान ने उनको यह सूचना क्यों नहीं दी जबकि मैं रात में उनके घर अपने बेटे के बारे में पूछने भी गई थी। जबकि उनका बेटा तभी से गायब था जब वो प्रधान के बुलावे पर गया था। इसके साथ ही वो कहती हैं कि प्रधान कह रहे हैं कि उनके बेटे ने सुबह के आठ बजे फांसी लगाई, यह बात उन्हें कैसे मालूम? क्या वो घटना स्थल पर मौजूद थे?”

जाहिर है कि इस मामले में कई ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब पुलिस को देना चाहिए। मृतक के परिवार के आरोपों के आधार पर शक की सुई प्रधान की ओर घूमती नजर आती है। अंगद की मां का यह सवाल जायज है कि प्रधान को ये कैसे मालूम हुआ कि उसके बेटे ने 8 बजे फांसी लगाई और अगर उन्हें ये मालूम था तो उन्होंने अंगद की जान बचाने की कोशिश क्यों नहीं की? जबकि घटना स्थल से उनके घर की दूरी पांच मिनट की भी नहीं है।

ऐसे में जब अंगद का परिवार कानून से इंसाफ की गुहार लगा रहा है, तो पुलिस को हर दृष्टिकोण से मामले की जांच करने की जरूरत है। अगर वाकई में अंगद की हत्या हुई है तो उसके परिवार को न्याय मिलना चाहिए।


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