जानें पोस्टल बैलेट पेपर की कहानी, क्यों होती है सबसे पहले इनकी गिनती

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लोकसभा के चुनाव के नतीजों की गिनती बस शुरू ही होने वाली है। शाम तक में ये तस्वीर साफ हो जाएगी कि सरकार किसकी बनेगी। सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती शुरू होगी। इसके बाद ईवीएम में दर्ज वोटों की गिनती होगी।

चुनाव आयोग की नियमावली है। जिसके तहत पोस्टल बैलेट (इटीपीबीएस) की गिनती ही सबसे पहले की जाती है। इसे लेकर आसान भाषा में कहा जाए तो पोस्टल बैलेट की संख्या कम होती है और ये पेपर वाले मत पत्र होते हैं और इन्हें गिना जाना भी आसान होता है। वहीं इनमें किसी तरह के मिलान की गुंजाइश भी नहीं होती है।


Postal Ballot पेपर

बैलेट पेपर की तरह ही Postal ballot पेपर्स भी होते हैं। इसके जरिए मतदाता अपने मत का इस्तेमाल करता है। पर यह हर किसी को नहीं मिलते हैं। पोस्टल बैलेट के जरिए वोट देने की सुविधा, चुनाव की ड्यूटी करने वालों और सेना के जवानों को ही मिलती है। इसके अलावा कोई ऐसी सुविधा नहीं दी जाती है। प्रिवेंटिव डिटेंशन में रहने वाले लोग भी इसका इस्तेमाल करते हैं।

पोस्टल बैलेट से वोटिंग करने वालों की संख्या चुनाव आयोग पहले ही निर्धारित कर लेता है। इसके बाद ऐसे मतदाताओं को मेल के जरिए इसे भेजा जाता है। इसके लिए पोस्टल बैलेट पेपर को स्कैन किया जाता है और इस स्कैन कॉपी को अटैच करके भेज दिया जाता है। ऐसे कर्मचारी और सैन्य अधिकारी जिनके लिए किसी भी तरह की इलेक्ट्रॉनिक सुविधा नहीं है, उनके पास डाक सेवा के जरिए मतपत्र भेजा जाता है। अगर किसी कारणवश मतदाता इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं या प्राप्त नहीं करते हैं तो यह भेजने वाले पते पर लौट आता है।

पोस्टल बैलेट किन लोगों को मिलता है

सेना या सरकार के लिए काम करने वालों या चुनाव की ड्यूटी के लिए अपने राज्य से बाहर तैनात हैं या आपको ‘प्रिवेंटिव डिटेंशन’ में रखा गया है। चुनाव आयोग पहले ही चुनावी क्षेत्र में डाक मतदान करने वालों की संख्या को निर्धारित कर लेता है। जिसके बाद खाली डाक मतपत्र को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से वोटर तक पहुंचाया जाता है। इसे Electronically Transmitted Postal Ballot System (ETPBS) कहा जाता है। अगर वोटर ऐसी जगह है जहां इलेक्ट्रॉनिक तरीके का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है तो वहां डाक सेवा से मतपत्र भेजा जाता है। अगर किसी कारण वोटर इसका प्रयोग नहीं कर पाता तो मतपत्र लौट आता है।


बैलेट पेपर क्या होते हैं

देश में 80 के दशक तक जो भी चुनाव होते थे वो बैलेट पेपर पर ही होते थे। बैलेट पेपर में प्रत्याशियों के चुनाव चिह्न और नाम छपे होते थे। चुनाव के दिए प्रत्येक मतदाता को मतदान केंद्र पर एक बैलेट पेपर दिया जाता था। फिर मतदाता अपनी पसंद के प्रत्याशी के नाम और चुनावी चिह्न के आगे सील या ठप्पा मार देता था। इस बैलेट पेपर को मोड़कर वहीं पर रखे बैलेट बॉक्स में डाल दिया था।

बैलेट पेपर को क्यों बंद किया गया था?

जब सारे वोट पड़ जाते थे तो इस बॉक्स को चुनाव अधिकारी सील बंद करके स्ट्रांग रूम तक पहुंचाते थे। इस प्रक्रिया में मेहनत के साथ ही देखरेख में खूब खर्च लगता है। वहीं मतदान पत्र पेटी यानी बैलेट बॉक्स रखवाली भी काफी मुश्किल होती थी। इतना ही नहीं बूथ कैपरिंग की घटनाएं भी सुनने को मिलती थीं। बैलेट पेपर मतदाताओं को धमकाकर भी वोटिंग करने की घटनाएं और बैलेट पेपर के इस्तेमाल में बहुत ज्यादा खर्च होता था। जिसके बाद चुनाव आयोग समय के साथ व्यवस्था में बदलाव करता गया। भारत में 1982 में केरल चुनाव में एक पोलिंग बूथ पर पहली EVM का इस्तेमाल किया। इसके बाद से ये अब तक होने वाले चुनाव का हिस्सा हैं।

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