मदन मोहन हिंदी फिल्मों के सबसे बेहतरीन संगीतकारों में से एक थे। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत और पश्चिमी धुनों को मिला कर अपनी शैली बनाई। आम लोगों से लेकर संगीत के विशेषज्ञों तक, मदन मोहन ने सभी को अपने संगीत से लुभाया। आज उनकी पुण्यतिथि है।
1924 में जन्मे मदन मोहन कोहली ने अपने 25 साल के करियर में 100 से ज्यादा फिल्मों में म्यूजिक दिया, जिनमें से 25 फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुईं। उनकी कई धुनें तो उपयुक्त फिल्म न होने की वजह से कभी इस्तेमाल ही नहीं हो पायीं। लता मंगेशकर उन्हें ‘ग़ज़लों का शहज़ादा’ कहकर बुलाती थी। वहीं, संगीत के सम्राट नौशाद तो मदन मोहन के गाने ‘आपकी नजरों ने समझा’ के लिए अपनी पूरी दौलत लुटाने को तैयार थे। आइये आपको बताते है ग़ज़लों के इस शहज़ादे के कुछ सबसे बेहतरीन गानों के बारे में।
होके मजबूर उसने मुझे भुलाया होगा (हकीकत: 1964)
मदन मोहन का यह गाना उनके सबसे यादगार गानों में से एक है। कैफ़ी आज़मी के बोल और मदन मोहन के संगीत ने इस गाने में चार चांद लगा दिए थे। यह इकलौता ऐसा गाना है, जिसे चार बेस्ट प्लेबैक सिंगर्स – रफी, तलत, मन्ना डे और भूपेंद्र ने अपनी आवाज दी।
लग जा गले कि फिर हंसी रात हो न हो (वो कौन थी: 1964)
मदन मोहन का यह गाना उनके सबसे सफल गानों में से एक है। इस गाने के बोल, संगीत, लता की आवाज, सब वाकई में बहुत खूबसूरत है। यह गाना आज भी उतना ही पसंद किया जाता है।
मिलो न तुम तो (हीर रांझा: 1970)
फिल्म के इस गाने में पंजाबी तड़के के साथ मिठास और मासूमियत इस गाने को यादगार बनाती है।
मेरा साया साथ होगा (मेरा साया: 1966)
सुनील दत्त और साधना की इस फिल्म में राजा मेहदी अली खान ने इस गाने के बोल लिखे, जिसे मदन मोहन ने अपने सुरों से सजाया। लता मंगेशकर की आवाज में इस गाने को काफी पसंद किया गया।
दो पल रुका (वीर ज़ारा: 2004)
मदन मोहन के निधन के बाद उनकी धुन को उनके बेटे संजीव कोहली ने रिक्रिएट किया। गाने को यश चोपड़ा ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘वीर-ज़ारा’ में शाहरुख खान और प्रीती ज़िंटा पर फिल्माया गया। जावेद अख्तर के बोल और लता मंगेशकर की आवाज में इस गाने को लोगों ने काफी पसंद किया।